अर्जुन उवाच
दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तवसौम्यं जनार्दन।
इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः।।11.51।।
श्रीमद् भगवद्गीता
।।11.51।। अर्जुन ने कहा -- हे जनार्दन! आपके इस सौम्य मनुष्य रूप को देखकर अब मैं शांतचित्त हुआ अपने स्वभाव को प्राप्त हो गया हूँ।।
।।11.51।। --,दृष्ट्वा इदं मानुषं रूपं मत्सखं प्रसन्नं तव सौम्यं जनार्दन? इदानीम्? अधुना अस्मि संवृत्तः संजातः। किम् सचेताः प्रसन्नचित्तः प्रकृतिं स्वभावं गतश्च अस्मि।।श्रीभगवानुवाच --,
।।11.51।। देशकालातीत वस्तु को ग्रहण तथा अनुभव करने के लिए आवश्यक पूर्व तैयारी के अभाव के कारण अकस्मात् समष्टि के इतने विशाल विराट् रूप को देखकर स्वाभाविक है कि अर्जुन भय और मोह से ग्रस्त हो गया था। परन्तु यहाँ वह स्वीकार करता है कि भगवान् के शान्त? सौम्य मनुष्य रूप को देखकर वह शान्तचित्त होकर अपने स्वभाव को प्राप्त हो गया है।अब भगवान् स्वयं ही ईश्वर की भक्ति का वर्णन अगले श्लोक में करते हैं।
।।11.51।।दृष्ट्वेति। सकलोपसंहारान्ते (S सकलः संहारान्ते) परमप्रशान्तरूपां ब्रह्म तत्त्वस्थितिं ददाति इत्युपसंहारे भगवतः सौम्यता।