श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

तत्क्षेत्रं यच्च यादृक् च यद्विकारि यतश्च यत्।

स च यो यत्प्रभावश्च तत्समासेन मे श्रृणु।।13.4।।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।13.4।। इसलिये, वह क्षेत्र जो है और जैसा है तथा जिन विकारों वाला है, और जिस (कारण) से जो (कार्य) हुआ है तथा वह (क्षेत्रज्ञ) भी जो है और जिस प्रभाव वाला है, वह संक्षेप में मुझसे सुनो।।
 

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।13.4।। --,यत् निर्दिष्टम् इदं शरीरम् इति तत् तच्छब्देन परामृशति। यच्च इदं निर्दिष्टं क्षेत्रं तत् यादृक् यादृशं स्वकीयैः धर्मैः। शब्दः समुच्चयार्थः। यद्विकारि यः विकारः यस्य तत् यद्विकारि? यतः यस्मात् यत्? कार्यम् उत्पद्यते इति वाक्यशेषः। स च यः क्षेत्रज्ञः निर्दिष्टः सः यत्प्रभावः ये प्रभावाः उपाधिकृताः शक्तयः यस्य सः यत्प्रभावश्च। तत् क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोः याथात्म्यं यथाविशेषितं समासेन संक्षेपेण मे मम वाक्यतः शृणु? श्रुत्वा अवधारय इत्यर्थः।।तत् क्षेत्रक्षेत्रज्ञयाथात्म्यं विवक्षितं स्तौति श्रोतृबुद्धिप्ररोचनार्थम् --,

Hindi Commentary By Swami Chinmayananda

।।13.4।। भगवान् श्रीकृष्ण न केवल क्षेत्र की वस्तुओं का उल्लेख ही करेंगे? वरन् क्षेत्र के गुण धर्म? उसके विकार तथा कौन से कारण से ऋ़ौन सा कार्य उत्पन्न हुआ है? इसका भी वर्णन करेंगे। उसी प्रकार? क्षेत्रज्ञ का स्वरूप तथा उपाधियों से सम्बद्ध उसके प्रभाव को भी इस अध्याय में बतायेंगे। ये सब? मुझसे संक्षेप में सुनो।अनन्त आत्मा के स्वरूप को दर्शाने वाले विशेषणों को पुन दोहराने मात्र से अथवा उस पर विशेष बल देकर कहने से एक निष्ठावान् साधक को कोई विशेष लाभ भी नहीं होता और न उसके विकास में कोई सहायता मिलती है। जिन कारणों से हमारे जीवन की समस्यायें उत्पन्न होती हैं उनकी ओर से दृष्टि फेर लेने का अर्थ है? समस्या को नहीं सुलझाना। हमारे आसपास का यह जगत्? जिसे हमने ही प्रेक्षित किया है? तथा वे ही प्रक्रियायें जिनके द्वारा हम कार्य करते हुये असंख्य विषयों? भावनाओं और विचारों की विविधता को देखते हैं इन सबका हमें सूक्ष्म निरीक्षण तथा अध्ययन करना चाहिये। इसकी उपेक्षा करने का अर्थ स्वयं को विशाल आवश्यक सारभूत ज्ञान से वंचित रखना है। यह अपनी ही प्रवंचना है।शत्रुओं के विरुद्ध युद्धनीति सम्बन्धी योजना बनाने के लिए शत्रुपक्ष की रणनीति का कमसेकम सामान्य ज्ञान होना आवश्यक होता है। इसी प्रकार? क्षेत्र से युद्ध करके उस पर विजय पाकर उसके बन्धनों से स्वयं को मुक्त करने के लिये यह जानना आवश्यक है कि क्षेत्र क्या है तथा परिस्थिति विशेष में ये उपाधियाँ किस प्रकार कार्य और व्यवहार करती हैं।इस प्रकार? शरीरशास्त्र? जीवशास्त्र? मनोविज्ञान तथा अन्य प्राकृतिक विज्ञान की शाखायें भी जीवन को समझने में अपना योगदान देती हैं। अध्यात्म का ज्ञानमार्ग समस्त लौकिक विज्ञानों का चरम बिन्दु है और उसकी पूर्तिस्वरूप है। इस बात की पुष्टि इसी तथ्य से होती है कि? युद्धभूमि पर भी अर्जुन को इस ज्ञान का उपदेश देते समय? भगवान् इस बात पर बल देने के लिए भूलते नहीं कि इस क्षेत्र का सम्पूर्ण ज्ञान होना महत्व की बात है। इसका हमें सूक्ष्म अध्ययन करना चाहिये।क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के याथात्म्य को देखने? अध्ययन करने और समझने में शिष्य की अभिरुचि उत्पन्न करने के लिए भगवान् इस विषय वस्तु की स्तुति करते हुये कहते हैं

Sanskrit Commentary By Sri Abhinavgupta

।।13.4 -- 13.5।।तत्क्षेत्रमिति। ऋषिभिरिति। येन विकारं गच्छति यद्विकारि। समासेनेति अविभागेनैव सर्वान्प्रश्नान् (S??K एतान् (S तान्) प्रश्नान्) साधारणोत्तरेण परिच्छिनत्ति। यद्यपि च ऋषिभिर्बहुधा वेदैश्चोक्तमेतत्। तथापि समासेनाहं व्याचक्षे इति।

English Translation of Abhinavgupta's Sanskrit Commentary By Dr. S. Sankaranarayan

13.4 See Comment under 13.5

English Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

13.4 Srnu, hear, i.e., having heard, understand; me, from Me, from My utterance; samasena, in brief; about (all) tat, that-the true nature of the field and the Knower of the field, as they have been described; as to yat, what; tat, that-tat stands for that which has been indicated as 'This body' (in verse 1); ksetram, field is, which has been referred to as 'this'; ca, and; yadrk, how it is along with its own alities; yadvikari, what its changes are; ca, and; yatah, from what cause; arises yat, what effect (-arises is understood-); sah ca yah, and who He, the Knower of the field indicated above, is; ca, and; yat-prabhavah, what His powers are. Yat-probhavah is He who is possessed of the powers arising from the adjuncts. The word ca has been used (throughout) in the sense of and. For making the intellect of the hearer interested the Lord praises that true nature of the field and the Knower of the field which is intended to be taught:

English Translation By Swami Gambirananda

13.4 Hear from Me in brief about (all) that as to what that field is and how it is; what its changes are, and from what cause arises what effect; and who He is, and what His powers are.