श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।

निर्ममो निरहंकारः स शांतिमधिगच्छति।।2.71।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।2.71।।क्योंकि ऐसा है इसलिये

जो संन्यासी पुरुष सम्पूर्ण कामनाओंको और भोगोंको अशेषतः त्यागकर अर्थात् केवल जीवनमात्रके निमित्त ही चेष्टा करनेवाला होकर विचरता है।
तथा जो स्पृहासे रहित हुआ है अर्थात् शरीरजीवनमात्रमें भी जिसकी लालसा नहीं है।
ममतासे रहित है अर्थात् शरीरजीवनमात्रके लिये आवश्यक पदार्थोंके संग्रहमें भी यह मेरा है ऐसे भावसे रहित है।
तथा अहंकारसे रहित है अर्थात् विद्वत्ता आदिके सम्बन्धसे होनेवाले आत्माभिमानसे भी रहित है।
वह ऐसा स्थितप्रज्ञ ब्रह्मवेत्ता ज्ञानी संसारके सर्वदुःखोंकी निवृत्तिरूप मोक्ष नामक परम शान्तिको पाता है अर्थात् ब्रह्मरूप हो जाता है।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।2.71।।

 विहाय  परित्यज्य  कामान् यः  संन्यासी  पुमान् सर्वान्  अशेषतः कात्स्न्र्येन  चरति  जीवनमात्रचेष्टाशेषः पर्यटतीत्यर्थः।  निःस्पृहः  शरीरजीवनमात्रेऽपि निर्गता स्पृहा यस्य सः निःस्पृहः सन्  निर्ममः  शरीरजीवनमात्राक्षिप्तपरिग्रहेऽपि ममेदम् इत्यभिनिवेशवर्जितः  निरहंकारः  विद्यावत्त्वादिनिमित्तात्मसंभावनारहितः इत्येतत्।  सः  एवंभूतः स्थितप्रज्ञः ब्रह्मवित्  शान्तिं  सर्वसंसारदुःखोपरमलक्षणां निर्वाणाख्याम्  अधिगच्छति  प्राप्नोति ब्रह्मभूतो भवति इत्यर्थः।।
सैषा ज्ञाननिष्ठा स्तूयते।।

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।2.71।। जो मनुष्य सम्पूर्ण कामनाओंका त्याग करके स्पृहारहित, ममतारहित और अहंकाररहित होकर आचरण करता है, वह शान्तिको प्राप्त होता है।
 

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।2.71।। जो पुरुष सब कामनाओं को त्यागकर स्पृहारहित? ममभाव रहित और निरहंकार हुआ विचरण करता है? वह शान्ति प्राप्त करता है।।

English Translation by Shri Purohit Swami

2.71 He attains Peace who, giving up desire, moves through the world without aspiration, possessing nothing which he can call his own, and free from pride.