श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।

जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।।3.43।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।3.43।।इस प्रकार बुद्धिसे अति श्रेष्ठ आत्माको जानकर और आत्मासे ही आत्माको स्तम्भन करके अर्थात् शुद्ध मनसे अच्छी प्रकार आत्माको समाधिस्थ करके हे महाबाहो इस कामरूप दुर्जय शत्रुका त्याग कर अर्थात् जो दुःखसे वशमें किया जाता है उस अनेक दुर्विज्ञेय विशेषणोंसे युक्त कामका त्याग कर दे।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।3.43।। एवं बुद्धेः परम् आत्मानं बुद्ध्वा ज्ञात्वा संस्तभ्य सम्यक् स्तम्भनं कृत्वा आत्मानं स्वेनैव आत्मना संस्कृतेन मनसा सम्यक् समाधायेत्यर्थः। जहि एनं शत्रुं हे महाबाहो कामरूपं दुरासदं दुःखेन आसदः आसादनं प्राप्तिः यस्य तं दुरासदं दुर्विज्ञेयानेकविशेषमिति।।इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्यश्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ श्रीमद्भगवद्गीताभाष्येतृतीयोऽध्यायः।।

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।3.42 -- 3.43।। इन्द्रियोंको (स्थूलशरीरसे) पर (श्रेष्ठ, सबल, प्रकाशक, व्यापक तथा सूक्ष्म) कहते हैं। इन्द्रियोंसे पर मन है, मनसे भी पर बुद्धि है औऱ जो बुद्धिसे भी पर है वह (काम) है। इस तरह बुद्धिसे पर - (काम-) को जानकर अपने द्वारा अपने-आपको वशमें करके हे महाबाहो ! तू इस कामरूप दुर्जय शत्रुको मार डाल।
 

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।3.43।। इस प्रकार बुद्धि से परे (शुद्ध) आत्मा को जानकर आत्मा (बुद्धि) के द्वारा आत्मा (मन) को वश में करके, हे महाबाहो ! तुम इस दुर्जेय (दुरासदम्) कामरूप शत्रु को मारो।।
 

English Translation by Shri Purohit Swami

3.43 Thus, O Mighty-in-Arms, knowing Him to be beyond the intellect and, by His help, subduing thy personal egotism, kill thine enemy, Desire, extremely difficult though it be."