श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः।

गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः।।10.26।।

 

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।10.26।। सम्पूर्ण वृक्षोंमें पीपल, देवर्षियोंमें नारद, गन्धर्वोंमें चित्ररथ और सिद्धोंमें कपिल मुनि मैं हूँ।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।10.26।। मैं समस्त वृक्षों में अश्वत्थ (पीपल) हूँ और देवर्षियों में नारद हूँ; मैं गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्ध पुरुषों में कपिल मुनि हूँ।।
 

Sanskrit Commentary By Sri Madhusudan Saraswati

।।10.26।।सर्वेषां वृक्षाणां वनस्पतीनामन्येषां च। देवा एव सन्तो ये मन्त्रदर्शित्वेन ऋषित्वं प्राप्तास्ते देवर्षयस्तेषां मध्ये नारदोऽहमस्मि। गन्धर्वाणां गानधर्मिणां देवगायकानां मध्ये चित्ररथोऽहमस्मि। सिद्धानां जन्मनैव विनाप्रयत्नं धर्मज्ञानवैराग्यैश्वर्यातिशयं प्राप्तानामधिगतपरमार्थानां मध्ये कपिलो मुनिरहम्।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।10.26।। --,अश्वत्थः सर्ववृक्षाणाम्? देवर्षीणां च नारदः देवाः एव सन्तः ऋषित्वं प्राप्ताः मन्त्रदर्शित्वात्ते देवर्षयः? तेषां नारदः अस्मि। गन्धर्वाणां चित्ररथः नाम गन्धर्वः अस्मि। सिद्धानां जन्मनैव धर्मज्ञानवैराग्यैश्वर्यातिशयं प्राप्तानां कपिलो मुनिः।।

Hindi Commentary By Swami Chinmayananda

।।10.26।। मैं समस्त वृक्षों में अश्वत्थ वृक्ष हूँ परिमाण और आयुमर्यादा दोनों की दृष्टि से अश्वत्थ अर्थात् पीपलवृक्ष को सर्वव्यापक और नित्य माना जा सकता है? क्योंकि वह प्राय कई शताब्दियों तक जीवित रहता है। हिन्दू लोग उसकी पूजा करते हैं। उसके साथ दिव्यता और पवित्रता की भावना जुड़ी हुई है। वैदिक परम्परा से परिचित लोगों को अश्वत्थ शब्द उपनिषदों में वर्णित संसार वृक्ष के रूपक का स्मरण भी कराता है। गीता के भी आगे आने वाले एक अध्याय में अश्वत्थ वृक्ष का वर्णन मिलता है? जो इस दृश्यमान मिथ्या जगत् का प्रतीक रूप है।मैं देवर्षियों में नारद हूँ देवर्षि नारद हमारी पौराणिक कथाओं के एक प्रिय पात्र हैं। नारद का वर्णन हरिभक्त के रूप में किया गया है। वे न केवल देवर्षियों में महान् हैं? वरन् वे प्राय इस पृथ्वीलोक पर अवतरित होकर लोगों के मन में गर्व अभिमान दूर करने के लिए जानबूझकर उनकी आपस में कलह करवाते हैं और अन्त में सबको भक्ति का मार्ग दर्शाकर स्वर्ग सुख की प्राप्ति कराते हैं। सम्भवत? श्रीकृष्ण स्वयं धर्मोद्धारक और धर्मप्रचारक होने के नाते नारद जी के प्रति उनके प्रचार के उत्साह के कारण आदर भाव रखते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार अनेक अधर्मियों को धर्म मार्ग में परिवर्तित कर नारद जी ने उन्हें मोक्ष दिलाया है। भगवान् श्रीकृष्ण और नारद दोनों की ही समान महत्वाकांक्षा होने से दोनों के मध्य स्नेह होना स्वाभाविक ही है।मैं गन्धर्वों में चित्ररथ हूँ गन्धर्वगण स्वर्ग के गायक वृन्द हैं? जो कला और संगीत के द्वारा देवताओं का मनोरंजन करते हैं। स्वर्ग के मनोरंजन के वे सितारे हैं। उन गन्धर्वों में सर्वश्रेष्ठ हैं चित्ररथ।मैं सिद्धों में कपिल मुनि हूँ ये सिद्ध पुरुष जादूगर नहीं हैं। इस संस्कृत शब्द का अर्थ है जिस पुरुष ने अपने लक्ष्य (साध्य) को सिद्ध (प्राप्त) कर लिया है। अत आत्मानुभवी पुरुष ही सिद्ध कहलाता है। ऐसे सिद्ध पुरुषों में भगवान् कहते हैं कि? मैं कपिल मुनि हूँ। मुनि शब्द से उस पारम्परिक धारणा को बनाने की आवश्यकता नहीं है? जिसमें मुनि को एक बृद्ध? पक्व केश वाले? प्राय निर्वस्त्र और साधारणत अगम्य स्थानों में विचरण करने वाले पुरुष के रूप में अज्ञानी चित्रकारों के द्वारा चित्रित किया जाता है। उसके विषय में ऐसी धारणा प्रचलित हो गई है कि वह एक सामान्य नागरिक के समान न होकर जंगलों का कोई विचित्र प्राणी है? जो विचित्र्ा आहार पर जीता है। वस्तुत मुनि का अर्थ है मननशील अर्थात् तत्त्वचिन्तक पुरुष। वह शास्त्रीय कथनों के गूढ़ अभिप्रायों पर सूक्ष्म? गम्भीर मनन करता है। ऐसे विचारकों में मैं कपिल मुनि हूँ।सांख्य दर्शन के प्रणेता के रूप में कपिल मुनि सुविख्यात हैं? जिनका संकेत यहाँ किया गया है। अनेक सिद्धांतों पर गीता का सांख्य दर्शन के साथ मतैक्य है। अत भगवान् यहाँ कपिल मुनि को अपनी विभूति की सम्मानित प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं।पुन?

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।10.26।।समस्त वृक्षोंमें पीपलका वृक्ष और देवर्षियोंमें अर्थात् जो देव होकर मन्त्रोंके द्रष्टा होनेके कारण ऋषिभावको प्राप्त हुए हैं? उनमें मैं नारद हूँ। गन्धर्वोंमें मैं चित्ररथ नामक गन्धर्व हूँ? सिद्धोंमें अर्थात् जन्मसे ही अतिशय धर्म? ज्ञान? वैराग्य और ऐश्वर्यको प्राप्त हुए पुरुषोंमें मैं कपिलमुनि हूँ।

Sanskrit Commentary By Sri Madhavacharya

।।10.26 -- 10.27।।सुखरूपः पाल्यते लीयते च जगदनेनेति कपिलः।प्रीतिः सुखं कमानन्दः इत्यभिधानात् प्राणो ब्रह्म कं ब्रह्म खं ब्रह्म [छां.उ.4।10।5] इति च। ऋषिं प्रसूतं कपिलं यस्तमग्रे ज्ञानैर्बिभर्ति (ज्ञा) जायमानं च पश्येत् [श्वे.उ.5।2] सुखादनन्तात्पालनाल्लीयनाच्च यं वै देवं कपिलमुदाहरन्ति इति (सामवेदे) बाभ्रव्यशाखायाम्।

Sanskrit Commentary By Sri Ramanuja

।।10.26।।सर्ववृक्षाणां मध्ये पूज्यः अश्वत्थ एव अहम्। देवर्षीणां मध्ये परमवैष्णवो नारदः अहम् अस्मि। गन्धर्वाणां देवगायकानां मध्ये चित्ररथः अस्मि। सिद्धानां योगनिष्ठानां परमोपास्यः कपिलः अहम्।

English Translation of Abhinavgupta's Sanskrit Commentary By Dr. S. Sankaranarayan

10.26 See Comment under 10.42

English Translation by Shri Purohit Swami

10.26 Of trees I am the sacred Fig-tree, of the Divine Seers Narada, of the heavenly singers I am Chitraratha, their Leader, and of sages I am Kapila.

English Translation By Swami Sivananda

10.26 Among all the trees ( I am) the Peepul; among the divine sages, I am Narada; among Gandharvas, Chitraratha; among the perfected, the sage Kapila.