श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरेः।

विस्मयो मे महान् राजन् हृष्यामि च पुनः पुनः।।18.77।।

 

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।18.77।।हे राजन् ! भगवान् श्रीकृष्णके उस अत्यन्त अद्भुत विराट्रूपको याद कर-करके मेरेको बड़ा भारी आश्चर्य हो रहा है और मैं बार-बार हर्षित हो रहा हूँ।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।18.77।। हे राजन ! श्री हरि के अति अद्भुत रूप को भी पुन: पुन: स्मरण करके मुझे महान् विस्मय होता है और मैं बारम्बार हर्षित हो रहा हूँ।।
 

Sanskrit Commentary By Sri Madhusudan Saraswati

।।18.77।।यद्विश्वरूपाख्यं सगुणं रूपमर्जुनाय ध्यानार्थं भगवान्दर्शयामास तदिदानीमनुसंदधानमाह -- तच्चेति। तदिति विश्वरूपं हे राजन्? मम महान्विस्मयोऽतएव हृष्यामि चाहं स्पष्टमन्यत्।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।18.77।। --,त़च्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपम् अत्यद्भुतं हरेः विश्वरूपं विस्मयो मे महान् राजन्? हृष्यामि च पुनः पुनः।।किं बहुना --,

Hindi Commentary By Swami Chinmayananda

।।18.77।। भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना विश्वरूप दर्शाया था जिसका यहाँ संजय स्मरण कर रहा है। सहृदय व्यक्ति के लिए यह विश्वरूप इतना ही प्रभावकारी है? जितना कि गीता का ज्ञान एक बुद्धिमान व्यक्ति के लिए अविस्मरणीय है। वेदों में वर्णित विराट् पुरुष का दर्शन चौंका देने वाला है और गीता में? निसन्देह वह अति प्रभावशाली है। परन्तु कोई आवश्यक नहीं है कि यह महर्षि व्यास जी की केवल काव्यात्मक कल्पना ही हो दूसरे भी अनेक लोग हैं? जिनके अनुभव भी प्राय इसी के समान ही हैं।यदि गीता का तत्त्वज्ञान? मानव जीवन के गौरवशाली प्रयोजन को उद्घाटित करते हुए मनुष्य के बौद्धिक पक्ष को अनुप्राणित और हर्षित करता है? तो प्रत्येक नामरूप? अनुभव और परिस्थिति में मन्दस्मित वृन्दावनबिहारी भगवान् श्रीकृष्ण का दर्शन प्रेमरस से मदोन्मत्त भक्तों के हृदयों को जीवन प्रदायक हर्ष से आह्लादित कर देता है।मेरा ऐसा विचार है कि यदि संजय को स्वतन्त्रता दी जाती? तो उसने श्रीमद्भगवद्गीता पर एक सम्पूर्ण संजय गीता की रचना कर दी होती जब ज्ञान के मौन से बुद्धि हर्षित होती है? और प्रेम के आलिंगन में हृदय उन्मत्त होता है? तब मनुष्य अनुप्राणित कृतकृत्यता के भाव में आप्लावित हो जाता है।कृतकृत्यता के सन्तोष का वर्णन करने में भाषा एक दुर्बल माध्यम है इसलिए? अपनी मन की प्रबलतम भावना का और अधिक विस्तार किये बिना? संजय अपने दृढ़विश्वास को? गीता के इस अन्तिम एक श्लोक में? सारांशत घोषित करता है

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।18.77।।तथा हे राजन् हरिके उस अति अद्भुत विश्वरूपको भी बारम्बार याद करके? मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है और मैं बारम्बार हर्षित हो रहा हूँ।

Sanskrit Commentary By Sri Madhavacharya

।।18.77।।Sri Madhvacharya did not comment on this sloka.

Sanskrit Commentary By Sri Ramanuja

।।18.77।।तत् च अर्जुनाय प्रकाशितम् ऐश्वरं हरेः अत्यद्भुतं रूपं मया साक्षात्कृतं संस्मृत्य संस्मृत्य हृष्यतो मे महान् विस्मयो जायते पुनः पुनः च हृष्यामि।किम् अत्र बहुना उक्तेन

English Translation of Abhinavgupta's Sanskrit Commentary By Dr. S. Sankaranarayan

18.77 See Comment under 18.78

English Translation by Shri Purohit Swami

18.77 As memory recalls again and again the exceeding beauty of the Lord, I am filled with amazement and happiness.

English Translation By Swami Sivananda

18.77 And, remembering again and again, also that most wonderful form of Hari, great is my wonder, O King; and I rejoice again and again.