श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

ऋषिभिर्बहुधा गीतं छन्दोभिर्विविधैः पृथक्।

ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव हेतुमद्भिर्विनिश्िचतैः।।13.5।।

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।13.5।।श्रोताकी बुद्धिमें रुचि उत्पन्न करनेके लिये? उस कहे जानेवाले क्षेत्र और क्षेत्रज्ञके यथार्थ स्वरूपकी स्तुति करते हैं --, ( यह क्षेत्र और क्षेत्रज्ञका तत्त्व ) वसिष्ठादि ऋषियोंद्वारा बहुत प्रकारसे कहा गया है और ऋग्वेदादि नाना प्रकारके श्रुतिवाक्योंद्वारा भी पृथक्पृथक् -- विवेचनपूर्वक कहा गया है। तथा संशयरहित निश्चित ज्ञान उत्पन्न करनेवाले विनिश्चित और युक्तियुक्त ब्रह्मसूत्रके पदोंसे भी कहा गया है। जो वाक्य ब्रह्मके सूचक हैं उसका नाम ब्रह्मसूत्र है? उनके द्वारा ब्रह्म पाया जाता है -- जाना जाता है? इसलिये उनको पद कहते हैं? उनसे भी क्षेत्र और क्षेत्रज्ञका तत्त्व कहा गया है क्योंकि केवल आत्मा ही सब कुछ है ऐसी उपासना करनी चाहिये इत्यादि ब्रह्मसूचक पदोंसे ही आत्मा जाना जाता है।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।13.5।। --,ऋषिभिः वसिष्ठादिभिः बहुधा बहुप्रकारं गीतं कथितम्। छन्दोभिः छन्दांसि ऋगादीनि तैः छन्दोभिः विविधैः नानाभावैः नानाप्रकारैः पृथक् विवेकतः गीतम्। किञ्च? ब्रह्मसूत्रपदैश्च एव ब्रह्मणः सूचकानि वाक्यानि ब्रह्मसूत्राणि तैः पद्यते गम्यते ज्ञायते इति तानि पदानि उच्यन्ते तैरेव च क्षेत्रक्षेत्रज्ञयाथात्म्यम् गीतम् इति अनुवर्तते। आत्मेत्येवोपासीत (बृह0 उ0 1।4।7) इत्येवमादिभिः ब्रह्मसूत्रपदैः आत्मा ज्ञायते? हेतुमद्भिः युक्तियुक्तैः विनिश्चितैः निःसंशयरूपैः निश्चितप्रत्ययोत्पादकैः इत्यर्थः।।स्तुत्या अभिमुखीभूताय अर्जुनाय आह भगवान् --,

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।13.5।।(यह क्षेत्रक्षेत्रज्ञका तत्त्व) ऋषियोंके द्वारा बहुत विस्तारसे कहा गया है तथा वेदोंकी ऋचाओं-द्वारा बहुत प्रकारसे कहा गया है और युक्तियुक्त एवं निश्चित किये हुए ब्रह्मसूत्रके पदोंद्वारा भी कहा गया है।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।13.5।। (क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ के विषय में) ऋषियों द्वारा विभिन्न और विविध छन्दों में बहुत प्रकार से गाया गया है, तथा सम्यक् प्रकार से निश्चित किये हुये युक्तियुक्त ब्रह्मसूत्र के पदों द्वारा (अर्थात् ब्रह्म के सूचक शब्दों द्वारा) भी (वैसे ही कहा गया है)।।