श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार एव च।

जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम्।।13.9।।

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।13.9।।तथा --, इन्द्रियोंके शब्दादि विषयोंमें वैराग्य अर्थात् ऐहिक और पारलौकिक भोगोंमें आसक्तिका अभाव और,अनहंकार -- अहंकारका अभाव। तथा जन्म? मृत्यु? जरा? रोग और दुःखोंमें अर्थात् जन्मसे लेकर दुःखपर्यन्त प्रत्येकमें अलगअलग दोषोंका देखना। जन्ममें गर्भवास और योनिद्वारा बाहर निकलनारूप जो दोष है उसको देखना -- उसपर विचार करना। वैसे ही मृत्युमें दोष देखना? एवं बुढ़ापेमें प्रज्ञाशक्ति और तेजका तिरोभाव और तिरस्काररूप दोष देखना? तथा शिरपीड़ादि रोगरूप व्याधियोंमें दोषोंका देखना? अध्यात्म? अधिभूत और अधिदैवके निमित्तसे होनेवाले तीनों प्रकारके दुःखोंमें दोष देखना। अथवा ( यह भी अर्थ किया जा सकता है कि ) दुःख ही दोष है? इस दुःखरूप दोषको पहले कहे हुए प्रकारसे जन्मादिमें देखना अर्थात् जन्म दुःखमय है? मरना दुःख है? बुढ़ापा दुःख है और सब रोग दुःख हैं -- इस प्रकार देखना? परंतु ( यह ध्यान रहे कि ) ये जन्मादि दुःखके कारण होनेसे ही दुःख हैं? स्वरूपसे दुःख नहीं हैं। इस प्रकार जन्मादिमें दुःखरूप दोषको बारंबार देखनेसे शरीर? इन्द्रिय और विषयभोगोंमें वैराग्य उत्पन्न हो जाता है। उससे मनइन्द्रियादि करणोंकी आत्मसाक्षात्कार करनेके लिये अन्तरात्मामें प्रवृत्ति हो जाती है। इस प्रकार ज्ञानका कारण होनेसे जन्मादिमें दुःखरूप दोषकी बारंबार आलोचना करना ज्ञान कहा जाता है।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।13.9।। --,इन्द्रियार्थेषु शब्दादिषु दृष्टादृष्टेषु भोगेषु विरागभावो वैराग्यम् अनहंकारः अहंकाराभावः एव च जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनं जन्म च मृत्युश्च जरा च व्याधयश्च दुःखानि च तेषु जन्मादिदुःखान्तेषु प्रत्येकं दोषानुदर्शनम्। जन्मनि गर्भवासयोनिद्वारनिःसरणं दोषः? तस्य अनुदर्शनमालोचनम्। तथा मृत्यौ दोषानुदर्शनम्। तथा जरायां प्रज्ञाशक्तितेजोनिरोधदोषानुदर्शनं परिभूतता चेति। तथा व्याधिषु शिरोरोगादिषु दोषानुदर्शनम्। तथा दुःखेषु अध्यात्माधिभूताधिदैवनिमित्तेषु। अथवा दुःखान्येव दोषः दुःखदोषः तस्य जन्मादिषु पूर्ववत् अनुदर्शनम् -- दुःखं जन्म? दुःखं मृत्युः? दुःखं जरा? दुःखं व्याधयः। दुःखनिमित्तत्वात् जन्मादयः दुःखम्? न पुनः स्वरूपेणैव दुःखमिति। एवं जन्मादिषु दुःखदोषानुदर्शनात् देहेन्द्रियादिविषयभोगेषु वैराग्यमुपजायते। ततः प्रत्यगात्मनि प्रवृत्तिः करणानामात्मदर्शनाय। एवं,ज्ञानहेतुत्वात् ज्ञानमुच्यते जन्मादिदुःखदोषानुदर्शनम्।।किञ्च --,

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।13.9।।इन्द्रियोंके विषयोंमें वैराग्यका होना, अहंकारका भी न होना और जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था तथा व्याधियोंमें दुःखरूप दोषोंको बार-बार देखना।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।13.9।। इन्द्रियों के विषय के प्रति वैराग्य, अहंकार का अभाव, जन्म, मृत्यु, वृद्धवस्था, व्याधि और दुख में दोष दर्शन...৷৷.।।