श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

श्री भगवानुवाच

कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।

अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।।2.2।।

 

English Commentary By Swami Sivananda

2.2 कुतः whence, त्वा upon thee, कश्मलम् dejection, इदम् this, विषमे in perilous strait, समुपस्थितम् comes, अनार्यजुष्टम् unworthy (unaryanlike), अस्वर्ग्यम् heavenexcluding, अकीर्तिकरम् disgraceful, अर्जुन O Arjuna.

Commentary:
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Hindi Commentary By Swami Chinmayananda

।।2.2।। अपने आप को आर्य कहलाने वाले एक राजा को युद्धभूमि में इस प्रकार हतबुद्धि देखकर भगवान् को आश्चर्य हो रहा था। एक सच्चे आर्य अर्थात् श्रेष्ठ पुरुष का स्वभाव तो यह होता है कि जीवन में आने वाली किसी भी परिस्थिति में अपने मनसंयम से विचलित न होकर उन परिस्थितियों का कुशलता से सामना करता है और उनको अपने अनुकूल बना लेता है। समुचित शैली में जीवन यापन करके अत्यन्त प्रतिकूल और विषम परिस्थितियों को भी आनन्ददायक सफलता में परिवर्तित किया जा सकता है। यह सब मनुष्य की बुद्धिमत्ता पर निर्भर है कि वह अपने आप को जीवन के उत्थानपतन में सही दिशा में किस प्रकार ले जाता है। यहाँ भगवान् अर्जुन के आचरण को अनार्य कहते हैं। आर्य पुरुष जीवन के उच्च आदर्शों पवित्रता और गरिमा के आह्वान के प्रति सदैव जागरूक और प्रयत्नशील रहते हैं ।
अर्जुन की इस शोकाकुल अवस्था को देखकर श्रीकृष्ण को आश्चर्य इसलिये हो रहा था कि वे दीर्घ काल से अच्छी प्रकार जानते थे और इस प्रकार का शोकमोह अर्जुन के स्वभाव के सर्वथा विपरीत था। इसीलिये वे यहाँ कहते हैं तुमको इस विषमस्थल में৷৷.आदि।
हिन्दुओं का यह विश्वास है कि क्षत्रिय कुल में जन्मे हुये व्यक्ति का कर्तव्य है धर्म के लिये युद्ध करना और इस प्रकार यदि उसे रणभूमि में प्राण त्यागना पड़े तो उस वीर को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

English Translation By Swami Sivananda

2.2 The Blessed Lord said Whence is this perilous strait come upon thee, this dejection which is unworthy of you, disgraceful, and which will close the gates of heaven upon you, O Arjuna?