कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम्।
अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम्।।5.26।।
श्रीमद् भगवद्गीता
।।5.26।। काम-क्रोधसे सर्वथा रहित, जीते हुए मनवाले और स्वरूपका साक्षात्कार किये हुए सांख्ययोगियोंके लिये दोनों ओरसे--शरीरके रहते हुए अथवा शरीर छूटनेके बाद) निर्वाण ब्रह्म परिपूर्ण है।
।।5.26।। इस आसुरी युग में लोगों को दैवी जीवन जीने की प्रेरणा देने प्राणि मात्र के प्रति हृदय मे उमड़ते प्रेम के कारण वेश्या को पापमुक्त अथवा कोढ़ी को रोग मुक्त करने अंधकार को प्रकाशित करके अज्ञानियों का पथप्रदर्शन करने का समाज सेवा का कार्य करते हुए ज्ञानी पुरुष स्वयं अपने दिव्य स्वरूप में स्थित समाज की अशुद्धियों से लिप्त नहीं होता। जैसे एक चिकित्सक अस्वस्थ रोगियों का उपचार उनके मध्य रहकर करता हुआ भी उनके रोगें से अछूता रहता है या उनके दुखों से स्वयं भावावेश में नहीं आ जाता वैसे ही दुखार्त कामुक हीन वैषयिक प्रवृत्तियों के लोगों के मध्य रहकर भी ज्ञानी पुरुष को उनके अवगुणों का स्पर्श तक नहीं होता।किस प्रकार सिद्ध पुरुष जगत् के प्रलोभनों में अपने मन का समत्व बनाये रख पाता है भगवान् कहते हैं जो पुरुष अपने पुरुषार्थ के बल पर मन की काम और क्रोध की प्रवृत्तियों को विजित कर लेता है और शास्त्रों में उपदिष्ट दैवी जीवन के मार्ग का अनुसरण करता है वह आत्मज्ञान को प्राप्त करके इस समत्व को प्राप्त करता है जिसे कोई भी वस्तु या परिस्थिति विचलित नहीं कर पाती। वह इसी जीवन में तथा देह त्याग के पश्चात् भी ब्रह्मानन्द में ही स्थित रहता है।अब भगवान् सम्यक् दर्शन के साक्षात् अन्तरंग साधनध्यानयोग का वर्णन अगले दो सूत्ररूप श्लोकों में करते हैं
5.26 कामक्रोधवियुक्तानाम् of those who are free from desire and anger, यतीनाम् of the selfcontrolled ascetics, यतचेतसाम् of those who have controlled their thoughts, अभितः on all sides, ब्रह्मनिर्वाणम् absolute freedom, वर्तते exists, विदितात्मनाम् of those who have realised the Self.
Commentary:
Those who renounce all actions and practise Sravana (hearing of the scriptures), Manana (reflection) and Nididhyasana (meditation), who are established in Brahman or who are steadily devoted to the knowledge of the Self attain liberation or Moksha instantaneously (Kaivalya Moksha). Karma Yoga leads to Moksha step by step (Krama Mukti). First comes purification of the mind, then knowledge, then renunciation of all actions and eventually Moksha.