श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्।

तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि।।2.26।।

 

Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas

।।2.26।। व्याख्या-- 'अथ चैनं ৷৷. शोचितुमर्हसि'-- भगवान् यहाँ पक्षान्तररमें  'अथ च'  और  'मन्यसे'  पद देकर कहते हैं कि यद्यपि सिद्धान्तकी और सच्ची बात यही है कि देही किसी भी कालमें जन्मने-मरनेवाला नहीं है (गीता 2। 20), तथापि अगर तुम सिद्धान्तसे बिलकुल विरुद्ध बात भी मान लो कि देही नित्य जन्मनेवाला और नित्य मरनेवाला है, तो भी तुम्हें शोक नहीं होना चाहिये। कारण कि जो जन्मेगा, वह मरेगा ही और जो मरेगा, वह जन्मेगा ही--इस नियमको कोई टाल नहीं सकता।
अगर बीजको पृथ्वीमें बो दिया जाय, तो वह फूलकर अङ्कुर दे देता है और वही अङ्कुर क्रमशः बढ़कर वृक्षरूप हो जाता है। इसमें सूक्ष्म दृष्टिसे देखा जाय कि क्या वह बीज एक क्षण भी एकरूपसे रहा? पृथ्वीमें वह पहले अपने कठोररूपको छोड़कर कोमलरूपमें हो गया, फिर कोमल-रूपको छोड़कर अङ्कुररूपमें हो गया, इसके बाद अङ्कुरूपको छोड़कर वृक्षरूपमें हो गया और अन्तमें आयु समाप्त होनेपर वह सूख गया। इस तरह बीज एक क्षण भी एकरूपसे नहीं रहा, प्रत्युत प्रतिक्षण बदलता रहा। अगर बीज एक क्षण भी एकरूपसे रहता, तो वृक्षके सूखनेतककी क्रिया कैसे होती? उसने पहले रूपको छोड़ा--यह उसका मरना हुआ, और दूसरे रूपको धारण किया-- यह उसका जन्मना हुआ। इस तरह वह प्रतिक्षण ही जन्मता-मरता रहा। बीजकी ही तरह यह शरीर है। बहुत सूक्ष्मरूपसे वीर्यका जन्तु रजके साथ मिला। वह बढ़ते-बढ़ते बच्चेके रूपमें हो गया और फिर जन्म गया। जन्मके बाद वह बढ़ा, फिर घटा और अन्तमें मर गया। इस तरह शरीर एक क्षण भी एकरूपसे न रहकर बदलता रहा अर्थात् प्रतिक्षण जन्मता-मरता रहा।
भगवान् कहते हैं कि अगर तुम शरीरकी तरह शरीरीको भी नित्य जन्मने-मरनेवाला मान लो, तो भी यह शोकका विषय नहीं हो सकता।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।2.26।। और यदि तुम आत्मा को नित्य जन्मने और नित्य मरने वाला मानो तो भी,  हे महाबाहो !  इस प्रकार शोक करना तुम्हारे लिए उचित नहीं है।।
 

Hindi Commentary By Swami Chinmayananda

।।2.26।। 26 और 27 इन दो श्लोकों में भगवान् श्रीकृष्ण ने भौतिकवादी विचारकों का दृष्टिकोण केवल तर्क के लिए प्रस्तुत किया है। इस मत के अनुसार केवल प्रत्यक्ष प्रमाण ही ज्ञान का साधन है अर्थात् इन्द्रियों को जो ज्ञात है केवल वही सत्य है। इस प्रकार मानने पर उन्हें यह स्वीकार करना पड़ता है कि जीवन असंख्य जन्म और मृत्युओं की एक धारा या प्रवाह है। वस्तुयें निरन्तर उत्पन्न और नष्ट होती हैं और उनके मत के अनुसार यही जीवन है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि यदि जन्ममृत्यु का यह निरन्तर प्रवाह ही जीवन हो तब भी हे शक्तिशाली अर्जुन तुमको शोक नहीं करना चाहिये। क्योंकि

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।2.26।। हे महाबाहो ! अगर तुम इस देहीको नित्य पैदा होनेवाला अथवा नित्य मरनेवाला भी मानो, तो भी तुम्हें इस प्रकार शोक नहीं करना चाहिये।