श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक्।

प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः।।10.28।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।10.28।।शस्त्रोंमें मैं दधीचि ऋषिकी अस्थियोंसे बना हुआ वज्र हूँ। दूध देनेवाली गौओंमें कामधेनु -- वसिष्ठको सब कामनारूप दूध देनेवाली अथवा सामान्य भावसे जो भी कामधेनु है वह मैं हूँ। प्रजाको उत्पन्न करनेवाला कामदेव मैं हूँ और सर्पोंमें अर्थात् सर्पोके नाना भेदोंमें सर्पराज वासुकि मैं हूँ।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।10.28।। --,आयुधानाम् अहं वज्रं दधीच्यस्थिसंभवम्। धेनूनां दोग्ध्रीणाम् अस्मि कामधुक् वसिष्ठस्य सर्वकामानां दोग्ध्री? सामान्या वा कामधुक्। प्रजनः प्रजनयिता अस्मि कंदर्पः कामः सर्पाणां सर्पभेदानाम् अस्मि वासुकिः सर्पराजः।।

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।10.28।। आयुधोंमें वज्र और धेनुओंमें कामधेनु मैं हूँ। सन्तान-उत्पत्तिका हेतु कामदेव मैं हूँ और सर्पोंमें वासुकि मैं हूँ।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।10.28।। मैं शस्त्रों में वज्र और धेनुओं (गायों) में कामधेनु हूँ, प्रजा उत्पत्ति का हेतु कन्दर्प (कामदेव) मैं हूँ और सर्पों में वासुकि हूँ।।