श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया।

शक्य एवंविधो द्रष्टुं दृष्टवानसि मां यथा।।11.53।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।11.53।।किस लिये --, जिस प्रकार मुझे तूने देखा है ऐसे पहले दिखलाये हुए रूपवाला मैं न तो ऋक्? यजु? साम और अथर्व आदि चारों वेदोंसे? न चान्द्रायण आदि उग्र तपोंसे? न गौ? भूमि तथा सुवर्ण आदिके दानसे और न यजनसे ही देखा जा सकता हूँ अर्थात् यज्ञ या पूजासे भी मैं ( इस प्रकार ) नहीं देखा जा सकता।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।11.53।। --,न अहं वेदैः ऋग्यजुःसामाथर्ववेदैः चतुर्भिरपि? न तपसा उग्रेण चान्द्रायणादिना? न दानेन गोभूहिरण्यादिना? न च इज्यया यज्ञेन पूजया वा शक्यः एवंविधः यथादर्शितप्रकारः द्रष्टुं दृष्टवान् असि मां यथा त्वम्।।कथं पुनः शक्यः इति उच्यते --,

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।11.53।। जिस प्रकार तुमने मुझे देखा है, इस प्रकारका (चतुर्भुजरूपवाला) मैं न तो वेदोंसे, न तपसे, न दानसे और न यज्ञसे ही देखा जा सकता हूँ।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।11.53।। न वेदों से, न तप से, न दान से और न यज्ञ से ही मैं इस प्रकार देखा जा सकता हूँ, जैसा कि तुमने मुझे देखा है।।