श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।

न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।।16.23।।

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।16.23।।इस समस्त आसुरी सम्पत्तिके त्यागका और कल्याणमय आचरणोंका? मूल कारण शास्त्र है? शास्त्रप्रमाणसे ही दोनों किये जा सकते हैं? अन्यथा नहीं? अतः --, जो मनुष्य शास्त्रके विधानको? अर्थात् कर्तव्यअकर्तव्यके ज्ञानका कारण जो विधिनिषेधबोधक आदेश है उसको? छोड़कर कामनासे प्रयुक्त हुआ बर्तता है? वह न तो सिद्धिको -- पुरुषार्थकी योग्यताको पाता है? न इस लोकमें सुख पाता है और न परम गतिको अर्थात् स्वर्ग या मोक्षको ही पाता है।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।16.23।। --,यः शास्त्रविधिं शास्त्रं वेदः तस्य विधिं कर्तव्याकर्तव्यज्ञानकारणं विधिप्रतिषेधाख्यम् उत्सृज्य त्यक्त्वा वर्तते कामकारतः कामप्रयुक्तः सन्? न सः सिद्धिं पुरुषार्थयोग्यताम् अवाप्नोति? न अपि अस्मिन् लोके सुखं न अपि परां प्रकृष्टां गतिं स्वर्गं मोक्षं वा।।

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।16.23।। जो मनुष्य शास्त्रविधिको छोड़कर अपनी इच्छासे मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि-(अन्तःकरणकी शुद्धि-) को, न सुखको और न परमगतिको ही प्राप्त होता है।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।16.23।। जो पुरुष शास्त्रविधि को त्यागकर अपनी कामना से प्रेरित होकर ही कार्य करता है, वह न पूर्णत्व की सिद्धि प्राप्त करता है, न सुख और न परा गति।।