तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ।
ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि।।16.24।।
श्रीमद् भगवद्गीता
।।16.24।।सुतरां कर्तव्य और अकर्तव्यकी व्यवस्थामें तेरे लिये शास्त्र ही प्रमाण है? अर्थात् ज्ञान प्राप्त करनेका साधन है। अतः शास्त्रविधानसे कही हुई बातको समझकर यानी आज्ञाका नाम विधान है। शास्त्रद्वारा जो ऐसी आज्ञा दी जाय कि यह कार्य कर? यह मत कर वह शास्त्रविधान है? उससे बताये,हुए स्वकर्मको जानकर तुझे इस कर्मक्षेत्रमें कार्य करना उचित है। इह शब्द जिस भूमिमें कर्मोंका अधिकार है उसका लक्ष्य करवानेवाला है।
।।16.24।। --,तस्मात् शास्त्रं प्रमाणं ज्ञानसाधनं ते तव कार्याकार्यव्यवस्थितौ कर्तव्याकर्तव्यव्यवस्थायाम्। अतः ज्ञात्वा बुद्ध्वा शास्त्रविधानोक्तं विधिः विधानं शास्त्रेण विधानं शास्त्रविधानम् कुर्यात्? न कुर्यात् इत्येवंलक्षणम्? तेन उक्तं स्वकर्म यत् तत् कर्तुम् इह अर्हसि? इह इति कर्माधिकारभूमिप्रदर्शनार्थम् इति।।इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य,श्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ श्रीमद्भगवद्गीताभाष्ये
षोडशोऽध्यायः।।
।।16.24।।अतः तेरे लिये कर्तव्य-अकर्तव्यकी व्यवस्थामें शास्त्र ही प्रमाण है -- ऐसा जानकर तू इस लोकमें शास्त्र-विधिसे नियत कर्तव्य कर्म करनेयोग्य है।
।।16.24।। इसलिए तुम्हारे लिए कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्था (निर्णय) में शास्त्र ही प्रमाण है शास्त्रोक्त विधान को जानकर तुम्हें अपने कर्म करने चाहिए।।