श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

यया स्वप्नं भयं शोकं विषादं मदमेव च।

न विमुञ्चति दुर्मेधा धृतिः सा पार्थ तामसी।।18.35।।

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।18.35।।जिस धृतिके द्वारा मनुष्य स्वप्न -- निद्रा? भय -- त्रास? शोक -- दुःख और मदको नहीं छोड़ता। अर्थात् विषयसेवनको ही अपने लिये बहुत बड़ा पुरुषार्थ मानकर उन्मत्तकी भाँति मदको ही मनमें सदा कर्तव्यरूपसे समझता हुआ जो कुत्सित बुद्धिवाला मनुष्य इन सबको नहीं छोड़ता। यानी धारण ही किये रहता है। उसकी जो धृति है? वह तामसी मानी गयी है।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।18.35।। --,यया स्वप्नं निद्रां भयं त्रासं शोकं विषादं विषण्णतां मदं विषयसेवाम् आत्मनः बहुमन्यमानः मत्त इव मदम् एव च मनसि नित्यमेव कर्तव्यरूपतया कुर्वन् न विमुञ्चति धारयत्येव दुर्मेधाः कुत्सितमेधाः पुरुषः यः? तस्य धृतिः या? सा तामसी मता।।गुणभेदेन क्रियाणां कारकाणां च त्रिविधो भेदः उक्तः। अथ इदानीं फलस्य सुखस्य त्रिविधो भेदः उच्यते --,

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।18.35।।हे पार्थ ! दुष्ट बुद्धिवाला मनुष्य जिस धृतिके द्वारा निद्रा, भय, चिन्ता, दुःख और घमण्डको भी नहीं छोड़ता, वह धृति तामसी है।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।18.35।। हो पार्थ ! दुर्बुद्धि पुरुष जिस धारणा के द्वारा, स्वप्न, भय, शोक, विषाद और मद को नहीं त्यागता है, वह धृति तामसी है।।