श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

अर्जुन उवाच

नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।

स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव।।18.73।।

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।18.73।।अर्जुन बोला -- हे अच्युत मेरा अज्ञानजन्य मोह? जो कि समस्त संसाररूप अनर्थका कारण था और समुद्रकी भाँति दुस्तर था? नष्ट हो गया है। और हे अच्युत आपकी कृपाके आश्रित होकर मैंने आपकी कृपासे आत्मविषयक ऐसी स्मृति भी प्राप्त कर ली है कि जिसके प्राप्त होनेसे समस्त ग्रन्थियाँ -- संशय विच्छिन्न हो जाते हैं। इस मोहनाशविषयक प्रश्नोत्तरसे यह बात निश्चितरूपसे दिखलायी गयी है कि जो यह अज्ञानजनित मोहका नाश और आत्मविषयक स्मृतिका लाभ है? बस? इतना ही समस्त शास्त्रोंके अर्थज्ञानका फल है। इसी तरह ( छान्दोग्य ) श्रुतिमें भी मैं आत्माको न जाननेवाला शोक करता हूँ इस प्रकार प्रकरण उठाकर आत्मज्ञान होनेपर समस्त ग्रन्थियोंका विच्छेद बतलाया है। तथा हृदयकी ग्रन्थि विच्छिन्न हो जाती है वहाँ एकताका अनुभव करनेवालेको कैसा मोह और कैसा शोक इत्यादि मन्त्रवर्ण भी हैं। अब मैं संशयरहित हुआ आपकी आज्ञाके अधीन खड़ा हूँ। मैं आपका कहना करूँगा। अभिप्राय यह है कि मैं आपकी कृपासे कृतार्थ हो गया हूँ ( अब ) मेरा कोई कर्तव्य शेष नहीं है।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।18.73।। -- नष्टः मोहः अज्ञानजः समस्तसंसारानर्थहेतुः? सागर इव दुरुत्तरः। स्मृतिश्च आत्मतत्त्वविषया लब्धा? यस्याः लाभात् सर्वहृदयग्रन्थीनां विप्रमोक्षः त्वत्प्रसादात् तव प्रसादात् मया त्वत्प्रसादम् आश्रितेन अच्युत। अनेन मोहनाशप्रश्नप्रतिवचनेन सर्वशास्त्रार्थज्ञानफलम् एतावदेवेति निश्चितं दर्शितं भवति? यतः ज्ञानात् मोहनाशः आत्मस्मृतिलाभश्चेति। तथा च श्रुतौ अनात्मवित् शोचामि (छा0 उ0 7।1।3) इति उपन्यस्य आत्मज्ञानेन सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्षः उक्तः भिद्यते हृदयग्रन्थिः (मु0 उ0 2।2।8) तत्र को मोहः कः शोकः एकत्वमनुपश्यतः (ई0 उ0 7) इति च मन्त्रवर्णः। अथ इदानीं त्वच्छासने स्थितः अस्मि गतसंदेहः मुक्तसंशयः। करिष्ये वचनं तव। अहं त्वत्प्रसादात् कृतार्थः? न मे कर्तव्यम् अस्ति इत्यभिप्रायः।।परिसमाप्तः शास्त्रार्थः। अथ इदानीं कथासंबन्धप्रदर्शनार्थं संजयः उवाच --,संजय उवाच --,

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।18.73।।अर्जुन बोले -- हे अच्युत ! आपकी कृपासे मेरा मोह नष्ट हो गया है और स्मृति प्राप्त हो गयी है। मैं सन्देहरहित होकर स्थित हूँ। अब मैं आपकी आज्ञाका पालन करूँगा।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।18.73।। अर्जुन ने कहा -- हे अच्युत ! आपके कृपाप्रसाद से मेरा मोह नष्ट हो गया है, और मुझे स्मृति (ज्ञान) प्राप्त हो गयी है? अब मैं संशयरहित हो गया हूँ और मैं आपके वचन (आज्ञा) का पालन करूँगा।।