सञ्जय उवाच
इत्यहं वासुदेवस्य पार्थस्य च महात्मनः।
संवादमिममश्रौषमद्भुतं रोमहर्षणम्।।18.74।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।18.74।।शास्त्रका अभिप्राय समाप्त हो चुका। अब कथाका सम्बन्ध दिखलानेके लिये संजय बोला --, इस प्रकार मैंने यह उपर्युक्त अद्भुत -- अत्यन्त विस्मयकारक रोमाञ्च करनेवाला श्रीवासुदेव भगवान् और महात्मा अर्जुनका संवाद सुना।
Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya
।।18.74।। --,इति एवम् अहं वासुदेवस्य पार्थस्य च महात्मनः संवादम् इमं यथोक्तम् अश्रौषं श्रुतवान् अस्मि अद्भुतम् अत्यन्तविस्मयकरं रोमहर्षणं रोमाञ्चकरम्।।तं च इमम् --,
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।18.74।।सञ्जय बोले -- इस प्रकार मैंने भगवान् वासुदेव और महात्मा पृथानन्दन अर्जुनका यह रोमाञ्चित करनेवाला अद्भुत संवाद सुना।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।18.74।। संजय ने कहा -- इस प्रकार मैंने भगवान् वासुदेव और महात्मा अर्जुन के इस अद्भुत और रोमान्चक संवाद का वर्णन किया।।