श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन।

न चास्य सर्वभूतेषु कश्िचदर्थव्यपाश्रयः।।3.18।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।3.18।।क्योंकि उस परमात्मामें प्रीतिवाले पुरुषका इस लोकमें कर्म करनेसे कोई प्रयोजन ही नहीं रहता है। तो फिर कर्म न करनेसे उसको प्रत्यवायरूप अनर्थकी प्राप्ति होती होगी ( इसपर कहते हैं ) उसके न करनेसे भी उसे इस लोकमें कोई प्रत्यवायप्राप्तिरूप या आत्महानिरूप अनर्थकी प्राप्ति नहीं होती तथा ब्रह्मासे लेकर स्थावरतक सब प्राणियोंमें उसका कुछ भी अर्थव्यपाश्रय नहीं होता। किसी फलके लिये ( किसी प्राणिविशेषका ) जो क्रियासाध्य आश्रय है उसका नाम अर्थव्यपाश्रय है सो इस आत्मज्ञानीको किसी प्राणिविशेषका सहारा लेकर कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं करना है जिससे कि उसे तदर्थक किसी क्रियाका आरम्भ करना पड़े। परन्तु तू इस सब ओरसे परिपूर्ण जलाशयस्थानीय यथार्थ ज्ञानमें स्थित नहीं है।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।3.18।। नैव तस्य परमात्मरतेः कृतेन कर्मणा अर्थः प्रयोजनमस्ति। अस्तु तर्हि अकृतेन अकरणेन प्रत्यवायाख्यः अनर्थः न अकृतेन इह लोके कश्चन कश्चिदपि प्रत्यवायप्राप्तिरूपः आत्महानिलक्षणो वा नैव अस्ति। न च अस्य सर्वभूतेषु ब्रह्मादिस्थावरान्तेषु भूतेषु कश्चित् अर्थव्यपाश्रयः प्रयोजननिमित्तक्रियासाध्यः व्यपाश्रयः व्यपाश्रयणम् आलम्बनं कञ्चित् भूतविशेषमाश्रित्य न साध्यः कश्चिदर्थः अस्ति येन तदर्था क्रिया अनुष्ठेया स्यात्। न त्वम् एतस्मिन् सर्वतःसंप्लुतोदकस्थानीये सम्यग्दर्शने वर्तसे।।यतः एवम्

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।3.18।। उस (कर्मयोगसे सिद्ध हुए) महापुरुषका इस संसारमें न तो कर्म करनेसे कोई प्रयोजन रहता है, और न कर्म न करनेसे ही कोई प्रयोजन रहता है, तथा सम्पूर्ण प्राणियोंमें (किसी भी प्राणीके साथ) इसका किञ्चिन्मात्र भी स्वार्थका सम्बन्ध नहीं रहता।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।3.18।। इस जगत् में उस पुरुष का कृत और अकृत से कोई प्रयोजन नहीं है और न वह किसी वस्तु के लिये भूतमात्र पर आश्रित होता है।।