तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः।।3.19।।
श्रीमद् भगवद्गीता
।।3.19।।जब कि ऐसी बात है इसलिये तू आसक्तिरहित होकर कर्तव्य नित्यकर्मोंका सदा भलीभाँति आचरण किया कर। क्योंकिअनासक्त होकर कर्म करनेवाला अर्थात् ईश्वरार्थ कर्म करता हुआ पुरुष अन्तःकरणकी शुद्धिद्वारा मोक्षरूप परमपद पा लेता है।
।।3.19।। तस्मात् असक्तः सङ्गवर्जितः सततं सर्वदा कार्यं कर्तव्यं नित्यं कर्म समाचर निर्वर्तय। असक्तो हि यस्मात् समाचरन् ईश्वरार्थंकर्म कुर्वन् परं मोक्षम् आप्नोति पूरुषः सत्त्वशुद्धिद्वारेण इत्यर्थः।।यस्माच्च
।।3.19।। इसलिये तू निरन्तर आसक्तिरहित होकर कर्तव्य-कर्मका भलीभाँति आचरण कर; क्योंकि आसक्तिरहित होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परमात्माको प्राप्त हो जाता है।
।।3.19।। इसलिए, तुम अनासक्त होकर सदैव कर्तव्य कर्म का सम्यक् आचरण करो; क्योकि, अनासक्त पुरुष कर्म करता हुआ परमात्मा को प्राप्त होता है।।