श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः।

मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।3.23।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।3.23।।यदि मैं कदाचित् आलस्यरहित सावधान होकर कर्मोंमें न बरतूँ तो हे पार्थ ये मनुष्य सब प्रकारसे मुझ श्रेष्ठके मार्गका अनुकरण कर रहे हैं।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।3.23।। यदि हि पुनः अहंवर्तेय जातु कदाचित् कर्मणि अतन्द्रितः अनलसः सन् मम श्रेष्ठस्य सतः वर्त्म मार्गम् अनुवर्तन्ते मनुष्याः हे पार्थ सर्वशः सर्वप्रकारैः।।

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।3.23 -- 3.24।।  हे पार्थ! अगर मैं किसी समय सावधान होकर कर्तव्यकर्म न करूँ तो बड़ी हानि हो जाय; क्योंकि मनुष्य सब प्रकारसे मेरे ही मार्गका अनुसरण करते हैं। यदि मैं कर्म न करूँ, तो ये सब मनुष्य नष्ट-भ्रष्ट हो जायँ और मैं वर्णसंकरताको करनेवाला होऊँ तथा इस समस्त प्रजाको नष्ट करनेवाला बनूँ।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।3.23।। यदि मैं सावधान हुआ (अतन्द्रित:) कदाचित कर्म में न लगा रहूँ तो, हे पार्थ ! सब प्रकार से मनुष्य मेरे मार्ग (र्वत्म) का अनुसरण करेंगे।।