भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति।।5.29।।
श्रीमद् भगवद्गीता
।।5.29।।इस प्रकार समाहितचित्त हुए पुरुषद्वारा जाननेयोग्य क्या है इसपर कहते हैं ( मनुष्य ) मुझ नारायणको कर्तारूपसे और देवरूपसे समस्त यज्ञों और तपोंका भोक्ता सर्वलोकमहेश्वर अर्थात् सब लोकोंका महान् ईश्वर समस्त प्राणियोंका सुहृद् प्रत्युपकार न चाहकर उनका उपकार करनेवाला सब भूतोंके हृदयमें स्थित सब कर्मोंके फलोंका स्वामी और सब संकल्पोंका साक्षी जानकर शान्तिको अर्थात् सब संसारसे उपरामताको प्राप्त हो जाता है।
।।5.29।। एवं समाहितचित्तेन किं विज्ञेयम् इति उच्यते भोक्तारं यज्ञतपसां यज्ञानां तपसां च कर्तृरूपेण देवतारूपेण च सर्वलोकमहेश्वरं सर्वेषां लोकानां महान्तम् ईश्वरं सुहृदं सर्वभूतानां सर्वप्राणिनां प्रत्युपकारनिरपेक्षतया उपकारिणं सर्वभूतानां हृदयेशयं सर्वकर्मफलाध्यक्षं सर्वप्रत्ययसाक्षिणं मां नारायणं ज्ञात्वा शान्तिं सर्वसंसारोपरतिम् ऋच्छति प्राप्नोति।।इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्यश्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ श्रीमद्भगवद्गीताभाष्ये
पञ्चमोऽध्यायः।।
।।5.29।। भक्त मुझे सब यज्ञों और तपोंका भोक्ता, सम्पूर्ण लोकोंका महान् ईश्वर तथा सम्पूर्ण प्राणियोंका सुहृद् (स्वार्थरहित दयालु और प्रेमी) जानकर शान्तिको प्राप्त हो जाता है।
।।5.29।। (साधक भक्त) मुझे यज्ञ और तपों का भोक्ता और सम्पूर्ण लोकों का महान् ईश्वर तथा भूतमात्र का सुहृद् (मित्र) जानकर शान्ति को प्राप्त होता है।।