जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये।
ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम्।।7.29।।
श्रीमद् भगवद्गीता
।।7.29।।वे किसलिये भजते हैं सो कहते हैं जो पुरुष जरा और मृत्युसे छूटनेके लिये मुझ परमेश्वरका आश्रय लेकर अर्थात् मुझमें चित्तको समाहित करके प्रयत्न करते हैं वे जो परब्रह्म है उसको जानते हैं एवं समस्त अध्यात्म अर्थात् अन्तरात्मविषयकवस्तुको और अखिल समस्त कर्मको भी जानते हैं।
।।7.29।। जरामरणमोक्षाय जरामरणयोः मोक्षार्थं मां परमेश्वरम् आश्रित्य मत्समाहितचित्ताः सन्तः यतन्ति प्रयतन्ते ये ते यत् ब्रह्म परं तत् विदुः कृत्स्नं समस्तम् अध्यात्मं प्रत्यगात्मविषयं वस्तु तत् विदुः कर्म च अखिलं समस्तं विदुः।।
।।7.29।। जरा (वृद्धावस्था) और मरण (मृत्यु) से मोक्ष पानेके लिये जो मेरा आश्रय लेकर प्रयत्न करते हैं, वे उस ब्रह्मको, सम्पूर्ण अध्यात्मको और सम्पूर्ण कर्मको भी जान जाते हैं।
।।7.29।। जो मेरे शरणागत होकर जरा और मरण से मुक्ति पाने के लिए यत्न करते हैं, वे पुरुष उस ब्रह्म को, सम्पूर्ण अध्यात्म को और सम्पूर्ण कर्म को जानते हैं।।