ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्।।8.13।।
श्रीमद् भगवद्गीता
।।8.13।।उसी जगह ( प्राणोंको ) स्थिर रखते हुए --, ओम् इस एक अक्षररूप ब्रह्मका अर्थात् ब्रह्मके स्वरूपका लक्ष्य करानेवाले ओंकारका उच्चारश करता हुआ और उसके अर्थरूप मुझ ईश्वररूपका चिन्तन करता हुआ जो पुरुष शरीरको छोड़कर जाता है अर्थात् मरता है वह इस प्रकार शरीरको छोड़कर जानेवाला परम गतिको पाता है। यहाँ त्यजन्देहम् यह विशेषण मरण का लक्ष्य करानेके लिये है। अभिप्राय यह कि देहके त्यागसे ही आत्माका मरण है स्वरूपके नाशसे नहीं।
।।8.13।। --,ओमिति एकाक्षरं ब्रह्म ब्रह्मणः अभिधानभूतम् ओंकारं व्याहरन् उच्चारयन् तदर्थभूतं माम् ईश्वरम् अनुस्मरन् अनुचिन्तयन् यः,प्रयाति म्रियते सः त्यजन् परित्यजन् देहं शरीरम् -- त्यजन् देहम् इति प्रयाणविशेषणार्थम् देहत्यागेन प्रयाणम् आत्मनः न स्वरूपनाशेनेत्यर्थः -- सः एवं याति गच्छति परमां प्रकृष्टां गतिम्।।किञ्च --,
।।8.12 -- 8.13।। (इन्द्रियोंके) सम्पूर्ण द्वारोंको रोककर मनका हृदयमें निरोध करके और अपने प्राणोंको मस्तकमें स्थापित करके योगधारणामें सम्यक् प्रकारसे स्थित हुआ जो साधक 'ऊँ' इस एक अक्षर ब्रह्मका उच्चारण और मेरा स्मरण करता हुआ शरीरको छोड़कर जाता है, वह परमगतिको प्राप्त होता है।
।।8.13।। जो पुरुष ओऽम् इस एक अक्षर ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ और मेरा स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है।।