श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

श्री भगवानुवाच

मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः।

असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु।।7.1।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।7.1।।इस श्लोकद्वारा छठे अध्यायके अन्तमें प्रश्नके बीजकी स्थापना करके फिर स्वयं ही ऐसा मेरा तत्त्व हे इस प्रकार मुझमें स्थित अन्तरात्मावाला हो जाना चाहिये इत्यादि बातोंका वर्णन करनेकी इच्छावाले भगवान् बोले आगे कहे जानेवाले विशेषणोंसे युक्त मुझ परमेश्वरमें ही जिसका मन आसक्त हो वह मय्यासक्तमना है और मैं परमेश्वर ही जिसका ( एकमात्र ) अवलम्बन हूँ वह मदाश्रय है हे पार्थ ऐसा मय्यासक्तमना और मदाश्रय होकर तू योगका साधन करताहुआ अर्थात् मनको ध्यानमें स्थित करता हुआ ( जिस प्रकार मुझको संशयरहित समग्ररूपसे जानेगा सो सुन ) जो कोई ( धर्मादि पुरुषार्थोंमेंसे ) किसी पुरुषार्थका चाहनेवाला होता है वह उसके साधनरूप अग्निहोत्रादि कर्म तप या दानरूप किसी एक आश्रयको ग्रहण किया करता है परंतु यह योगी तो अन्य साधनोंको छोड़कर केवल मुझको ही आश्रयरूपसे ग्रहण करता है और मुझमें ही आसक्तचित्त होता है। इसलिये तू उपर्युक्त गुणोंसे सम्पन्न होकर विभूति बल ऐश्वर्य आदि गुणोंसे सम्पन्न मुझ समग्र परमेश्वरको जिस प्रकार संशयरहित जानेगा कि भगवान् निस्सन्देह ठीक ऐसा ही है वह प्रकार मैं तुझसे कहता हूँ सुन।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।7.1।। मयि वक्ष्यमाणविशेषणे परमेश्वरे आसक्तं मनः यस्य सः मय्यासक्तमनाः हे पार्थ योगं युञ्जन् मनःसमाधानं कुर्वन् मदाश्रयः अहमेव परमेश्वरः आश्रयो यस्य सः मदाश्रयः। यो हि कश्चित् पुरुषार्थेन केनचित् अर्थी भवति स तत्साधनं कर्म अग्निहोत्रादि तपः दानं वा किञ्चित् आश्रयं प्रतिपद्यते अयं तु योगी मामेव आश्रयं प्रतिपद्यते हित्वा अन्यत् साधनान्तरं मय्येव आसक्तमनाः भवति। यः त्वं एवंभूतः सन् असंशयं समग्रं समस्तं विभूतिबलशक्त्यैश्वर्यादिगुणसंपन्नं मां यथा येन प्रकारेण ज्ञास्यसि संशयमन्तरेण एवमेव भगवान् इति तत् श्रृणु उच्यमानं मया।।तच्च मद्विषयम्

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।7.1।। श्रीभगवान् बोले -- हे पृथानन्दन ! मुझमें आसक्त मनवाला, मेरे आश्रित होकर योगका अभ्यास करता हुआ तू मेरे समग्ररूपको निःसन्देह जैसा जानेगा, उसको सुन।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।7.1।। हे पार्थ ! मुझमें असक्त हुए मन वाले तथा मदाश्रित होकर योग का अभ्यास करते हुए जिस प्रकार तुम मुझे समग्ररूप से, बिना किसी संशय के, जानोगे वह सुनो।।