श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम्।

भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावनः।।9.5।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।9.5।।मैं असंसर्गी हूँ? इसलिये --, ( वास्तवमें ) ब्रह्मादि सब प्राणी भी मुझमें स्थित नहीं हैं? तू मेरे इस ईश्वरीय योग -- युक्ति -- घटनाको देख? अर्थात् मुझ ईश्वरके योगको यानी यथार्थ आत्मतत्त्वको समझ। संसर्गरहित आत्मा कहीं भी लिप्त नहीं होता यह श्रुति भी संसर्गरहित होनेके कारण ( आत्माकी ) निर्लेपता दिखलाती है। यह और भी आश्चर्य देख कि भूतभावन मेरा आत्मा संसर्गरहित होकर भी भूतोंका भरणपोषण करता रहता है परंतु भूतोमें स्थित नहीं है। क्योंकि परमात्माका भूतोंमें स्थित होना सम्भव नहीं? यह बात उपर्युक्त न्यायसे स्पष्ट दिखलायी जा चुकी है। पू0 -- ( जब कि आत्मा अपनेसे कोई अन्य वस्तु ही नहीं है ) तो मेरा आत्मा यह कैसे कहा जाता है उ0 -- लौकिक बुद्धिका अनुकरण करते हुए देहादि संघातको आत्मासे अलग करके फिर उसमें अहंकारका अध्यारोप करके मेरा आत्मा ऐसा कहते हैं? आत्मा अपने आपसे भिन्न है ऐसा समझकर लोगोंकी भाँति अज्ञानपूर्वक ऐसा नहीं कहते। जो भूतोंको प्रकट करता है -- उत्पन्न करता है या बढ़ाता है उसको भूतभावन कहते हैं।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।9.5।। -- न च मत्स्थानि भूतानि ब्रह्मादीनि। पश्य मे योगं युक्तिं घटनं मे मम ऐश्वरम् ईश्वरस्य इमम् ऐश्वरम्? योगम् आत्मनो याथात्म्यमित्यर्थः। तथा च श्रुतिः असंसर्गित्वात् असङ्गतां दर्शयति -- असङ्गो न हि सज्जते (बृह0 उ0 3।9।26) इति। इदं च आश्चर्यम् अन्यत् पश्य -- भूतभृत् असङ्गोऽपि सन् भूतानि बिभर्ति न च भूतस्थः? यथोक्तेन न्यायेन दर्शितत्वात् भूतस्थत्वानुपपत्तेः। कथं पुनरुच्यते असौ मम आत्मा इति विभज्य देहादिसङ्घातं तस्मिन् अहंकारम् अध्यारोप्य लोकबुद्धिम् अनुसरन् व्यपदिशति मम आत्मा इति? न पुनः आत्मनः आत्मा अन्यः इति लोकवत् अजानन्। तथा भूतभावनः भूतानि भावयति उत्पादयति वर्धयतीति वा भूतभावनः।।यथोक्तेन श्लोकद्वयेन उक्तम् अर्थं दृष्टान्तेन उपपादयन् आह --,

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।9.4 -- 9.5।। यह सब संसार मेरे निराकार स्वरूपसे व्याप्त है। सम्पूर्ण प्राणी मुझ में स्थित हैं; परन्तु मैं उनमें स्थित नहीं हूँ तथा वे प्राणी भी मेरेमें स्थित नहीं हैं -- मेरे इस ईश्वर-सम्बन्धी योग-(सामर्थ्य-) को देख ! सम्पूर्ण प्राणियोंको उत्पन्न करनेवाला और उनका धारण, भरण-पोषण करनेवाला मेरा स्वरूप उन प्राणियोंमें स्थित नहीं है।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।9.5।। और (वस्तुत:) भूतमात्र मुझ में स्थित नहीं है; मेरे ईश्वरीय योग को देखो कि भूतों को धारण करने वाली और भूतों को उत्पन्न करने वाली मेरी आत्मा उन भूतों में स्थित नहीं है।।