क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।2.63।।
श्रीमद् भगवद्गीता
।।2.63।।क्रोधसे संमोह अर्थात् कर्तव्यअकर्तव्यविषयक अविवेक उत्पन्न होता है क्योंकि क्रोधी मनुष्य मोहित होकर गुरुको ( बड़ेको ) भी गोली दे दिया करता है।
मोहसे स्मृतिका विभ्रम होता है अर्थात् शास्त्र और आचार्यद्वारा सुने हुए उपदेशके संस्कारोंसे जो स्मृति उत्पन्न होती है उसके प्रकट होनेका निमित्त प्राप्त होनेपर वह प्रकट नहीं होती।
इस प्रकार स्मृतिविभ्रम होनेसे बुद्धिका नाश हो जाता है। अन्तःकरणमें कार्यअकार्यविषयक विवेचनकी योग्यताका न रहना बुद्धिका नाश कहा जाता है।
बुद्धिका नाश होनेसे ( यह मनुष्य ) नष्ट हो जाता है क्योंकि वह तबतक ही मनुष्य है जबतक उसका अन्तःकरण कार्यअकार्यके विवेचनमें समर्थ है ऐसी योग्यता न रहनेपर मनुष्य नष्टप्राय ( मनुष्यतासे हीन ) हो जाता है।
अतः उस अन्तःकरणकी ( विवेकशक्तिरूप ) बुद्धिका नाश होनेसे पुरुषका नाश हो जाता है। इस कथनका यह अभिप्राय है कि वह पुरुषार्थके अयोग्य हो जाता है।
।।2.63।।
क्रोधात् भवति संमोहः अविवेकः कार्याकार्यविषयः। क्रुद्धो हि संमूढः सन् गुरुमप्याक्रोशति। संमोहात् स्मृतिविभ्रमः शास्त्राचार्योपदेशाहितसंस्कारजनितायाः स्मृतेः स्यात् विभ्रमो भ्रंशः स्मृत्युत्पत्तिनिमित्तप्राप्तौ अनुत्पत्तिः। ततः स्मृतिभ्रंशात् बुद्धिनाशः बुद्धेर्नाशः। कार्याकार्यविषयविवेकायोग्यता अन्तःकरणस्य बुद्धेर्नाश उच्यते। बुद्धिनाशात् प्रणश्यति। तावदेव हि पुरुषः यावदन्तःकरणं तदीयं कार्याकार्यविषयविवेकयोग्यम्। तदयोग्यत्वे नष्ट एव पुरुषो भवति। अतः तस्यान्तःकरणस्य बुद्धेर्नाशात् प्रणश्यति पुरुषार्थायोग्यो भवतीत्यर्थः।।
सर्वानर्थस्य मूलमुक्तं विषयाभिध्यानम्। अथ इदानीं मोक्षकारणमिदमुच्यते
।।2.62 -- 2.63।। विषयोंका चिन्तन करनेवाले मनुष्यकी उन विषयोंमें आसक्ति पैदा हो जाती है। आसक्तिसे कामना पैदा होती है। कामनासे क्रोध पैदा होता है। क्रोध होनेपर सम्मोह (मूढ़भाव) हो जाता है। सम्मोहसे स्मृति भ्रष्ट हो जाती है। स्मृति भ्रष्ट होनेपर बुद्धिका नाश हो जाता है। बुद्धिका नाश होनेपर मनुष्यका पतन हो जाता है।
।।2.63।। क्रोध से उत्पन्न होता है मोह और मोह से स्मृति विभ्रम। स्मृति के भ्रमित होने पर बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि के नाश होने से वह मनुष्य नष्ट हो जाता है।।