मम योनिर्महद्ब्रह्म तस्मिन् गर्भं दधाम्यहम्।
संभवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत।।14.3।।
श्रीमद् भगवद्गीता
।।14.3।।अब यह बतलाते हैं कि इस प्रकारका क्षेत्र और क्षेत्रज्ञका संयोग भूतोंका कारण है --, मुझ ईश्वरकी माया -- त्रिगुणमयी प्रकृति? समस्त भूतोंकी योनि अर्थात् कारण है। समस्त कार्योंसे यानी उत्पत्तिशील वस्तुओंसे बड़ी होनेके कारण और अपने विकारोंको धारण करनेवाली होनेसे प्रकृति ही महत् ब्रह्म इस विशेषणसे विशेषित की गयी है। उस महत् ब्रह्मरूप योनिमें? मैं -- क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ इन दो प्रकृतिरूप शक्तियोंवाला ईश्वर? हिरण्यगर्भके जन्मके बीजरूप गर्भको? यानी सब भूतोंकी उत्पत्तिके कारणरूप बीजको? स्थापित किया करता हूँ। अर्थात् अविद्या? कामना? कर्म और उपाधिके स्वरूपका अनुवर्तन करनेवाले क्षेत्रको क्षेत्रज्ञसे संयुक्त किया करता हूं। हे भारत उस गर्भाधानसे हिरण्यगर्भकी उत्पत्तिद्वारा समस्त भूतोंकी उत्पत्ति होती है।
।।14.3।।तत्रादौ संसृतौ क्रममाह। हातव्ये ज्ञाते तत्करणे च? सुकरं हि हानम् -- ममेति। मम तावत् अव्यपदेश्यपरमानन्दरूपस्य महद् ब्रह्म बृंहकात्मीयशक्तिरूपं ब्रह्म। आत्मीयामेव हि विमर्शशक्तिमालम्ब्य अहमनादीन् आत्माणून् अनुग्रहार्थ संसारयामि।
।।14.3।।हे भरतवंशोद्भव अर्जुन ! मेरी मूल प्रकृति तो उत्पत्ति-स्थान है और मैं उसमें जीवरूप गर्भका स्थापन करता हूँ। उससे सम्पूर्ण प्राणियोंकी उत्पत्ति होती है।
।।14.3।। हे भारत ! मेरी महद् ब्रह्मरूप प्रकृति, (भूतों की) योनि है, जिसमें मैं गर्भाधान करता हूँ; इससे समस्त भूतों की उत्पत्ति होती है।।
।।14.3।। --,मम स्वभूता मदीया माया त्रिगुणात्मिका प्रकृतिः योनिः सर्वभूतानां कारणम्। सर्वकार्येभ्यो महत्त्वात् भरणाच्च स्वविकाराणां महत् ब्रह्म इति योनिरेव विशिष्यते। तस्मिन् महति ब्रह्मणि योनौ गर्भं हिरण्यगर्भस्य जन्मनः बीजं सर्वभूतजन्मकारणं बीजं दधामि निक्षिपामि क्षेत्रक्षेत्रज्ञप्रकृतिद्वयशक्तिमान् ईश्वरः अहम्? अविद्याकामकर्मोपाधिस्वरूपानुविधायिनं क्षेत्रज्ञं क्षेत्रेण संयोजयामि इत्यर्थः। संभवः उत्पत्तिः सर्वभूतानां हिरण्यगर्भोत्पत्तिद्वारेण ततः तस्मात् गर्भाधानात् भवति हे भारत।।