श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः।

तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता।।14.4।।

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।14.4।।हे कुन्तीपुत्र देव? पितृ? मनुष्य? पशु और मृग आदि समस्त योनियोंमें जो मूर्तियाँ? अर्थात् शरीराकार अलगअलग अङ्गोंके अवयवोंकी रचनायुक्त व्यक्तियाँ उत्पन्न होती हैं? उन सब मूर्तियोंकी सब प्रकारसे स्थित महत् ब्रह्मरूप मेरी माया तो गर्भ धारण करनेवाली योनि है? और मैं ईश्वर बीज प्रदान करनेवाला अर्थात् गर्भाधान करनेवाला पिता हूँ।

Sanskrit Commentary By Sri Abhinavgupta

।।14.4।।अत एव -- सर्वयोनिष्विति। सर्वासु योनिषु आदिकारणतया (S? आद्यकारणतया) बृंहिका भगवच्छक्तिः सकलसंसारजननस्वभावा (?K -- वमनस्वभावा) माता। पिता त्वहं शक्तिमान् अव्यपदेश्यः।

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।14.4।।हे कुन्तीनन्दन ! सम्पूर्ण योनियोंमें प्राणियोंके जितने शरीर पैदा होते हैं, उन सबकी मूल प्रकृति तो माता है और मैं बीज-स्थापन करनेवाला पिता हूँ।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।14.4।। हे कौन्तेय ! समस्त योनियों में जितनी मूर्तियाँ (शरीर) उत्पन्न होती हैं, उन सबकी योनि अर्थात् गर्भ है महद्ब्रह्म और मैं बीज की स्थापना करने वाला पिता हूँ।।
 

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।14.4।। --,देवपितृमनुष्यपशुमृगादिसर्वयोनिषु कौन्तेय? मूर्तयः देहसंस्थानलक्षणाः मूर्छिताङ्गावयवाः मूर्तयः संभवन्ति याः? तासां मूर्तीनां ब्रह्म महत् सर्वावस्थं योनिः कारणम् अहम् ईश्वरः बीजप्रदः गर्भाधानस्य कर्ता पिता।।के गुणाः कथं बध्नन्तीति? उच्यते --,