श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत।

तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्।।18.62।।

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।18.62।।हे भारत तू सर्वभावसे उस ईश्वरकी ही शरणमें जा अर्थात् संसारके समस्त क्लेशोंका नाश करनेके लिये मन? वाणी और शरीरद्वारा सब प्रकारसे उस ईश्वरका ही आश्रय ग्रहण कर। फिर उस ईश्वरके अनुग्रहसे परम -- उत्तम शान्तिको? अर्थात् उपरतिको और शाश्वत स्थानको अर्थात् मुझ विष्णुके परम नित्यधामको प्राप्त करेगा।

Sanskrit Commentary By Sri Abhinavgupta

।।18.61 -- 18.62।।ईश्वर इति। तमेवेति। एष ईश्वरः परमात्मा अवश्यं शरणत्वेन ग्राह्यः। तत्र हि अधिष्ठातरि कर्तरि ( omits कर्तरि ) बोद्धरि स्वात्ममये विमृष्टे ( ?N विस्पष्टे ) ? न कर्माणि स्थतिभाञ्जि भवन्ति। न हि निशिततरनखरकोटिविदारितसमदकरिकरटगलितमुक्ताफलनिकरपरिकरप्रकाशितप्रतापमहसि ( omits -- परिकर -- ) सिंहकिशोरके गुहामधितिष्ठति चपलमनसो विद्रवणमात्रबलशालिनो हरिणपोतकाः ( K हिरण -- ) स्वैरं स्वव्यापारपरिशीलनापटुभावमवलंबन्ते इति।तमेव शरणं गच्च्छइत्युपक्रम्य मत्प्रसादात् इति निर्वाहवाक्यमभिदधत् भगवान् परमात्मानम् ईश्वरं वासुदेवं च एकतया योजयति इति।

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।18.62।।हे भरतवंशोद्भव अर्जुन ! तू सर्वभावसे उस ईश्वरकी ही शरणमें चला जा। उसकी कृपासे तू परमशान्ति-(संसारसे सर्वथा उपरति-) को और अविनाशी परमपदको प्राप्त हो जायगा।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।18.62।। हे भारत ! तुम सम्पूर्ण भाव से उसी (ईश्वर) की शरण में जाओ। उसके प्रसाद से तुम परम शान्ति और शाश्वत स्थान को प्राप्त करोगे।।
 

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।18.62।। --,तमेव ईश्वरं शरणम् आश्रयं संसारार्तिहरणार्थं गच्छ आश्रय सर्वभावेन सर्वात्मना हे भारत। ततः तत्प्रसादात् ईश्वरानुग्रहात् परां प्रकृष्टां शान्तिम् उपरतिं स्थानं च मम विष्णोः परमं पदं प्राप्स्यसि शाश्वतं नित्यम्।।