श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

अवाच्यवादांश्च बहून् वदिष्यन्ति तवाहिताः।

निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम्।।2.36।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।2.36।।तथा

वे तेरे शत्रुगण निवातकवचादिके साथ युद्ध करनेमें दिखलाये हुए तेरे सामर्थ्यकी निन्दा करते हुए बहुतसे अनेक प्रकारके न कहने योग्य वाक्य भी तुझे कहेंगे।
उस निन्दाजनित दुःखसे अधिक बड़ा दुःख क्या है अर्थात् उससे अधिक कष्टकर कोई भी दुःख नहीं है।

Sanskrit Commentary By Sri Abhinavgupta

।।2.34 2.38।।यद्भयाच्च भवान् युद्धात् निवर्तते (K निवर्तेत) तदेव शतशाखमुपनिपतिष्यति भवत इत्याह
अथ चेत्यादि। श्लोकपञ्चकमिदम् अभ्युपगम्यवादरूपमुच्यते ( N उपगम्य) यदि लौकिकेन व्यवहारेणास्ते भवान् तथाप्यवश्यानुष्ठेयमेतत्।

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।2.36।। तेरे शत्रुलोग तेरी सार्मथ्यकी निन्दा करते हुए न कहनेयोग्य बहुत-से वचन भी कहेंगे। उससे बढ़कर और दुःखकी बात क्या होगी?
 

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।2.36।। तुम्हारे शत्रु तुम्हारे सार्मथ्य की निन्दा करते हुए बहुत से अकथनीय वचनों को कहेंगे,  फिर उससे अधिक दु:ख क्या होगा ?
 

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।2.36।।

 अवाच्यवादान्  अवक्तव्यवादां श्च बहून्  अनेकप्रकारान्  वदिष्यन्ति तव अहिताः  शत्रवः  निन्दन्तः  कुत्सयन्तः  तव  त्वदीयं  सामर्थ्यं  निवातकवचादियुद्धनिमित्तम्। ततः तस्मात् निन्दाप्राप्तेर्दुःखात्  दुःखतरं नु किम्  ततः कष्टतरं दुःखं नास्तीत्यर्थः।।
युद्धे पुनः क्रियमाणे कर्णादिभिः