क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति।
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति।।9.31।।
श्रीमद् भगवद्गीता
।।9.31।।आन्तरिक यथार्थ निश्चयकी शक्तिसे बाहरी दुराचारिताको छोड़कर --, वह शीघ्र ही धर्मात्मा -- धार्मिक चित्तवाला बन जाता है और सदा रहनेवाली नित्य शान्ति -- उपरतिको पा लेता है। हे कुन्तीपुत्र तू यथार्थ बात सुन? तू यह निश्चित प्रतिज्ञा कर अर्थात् दृढ़ निश्चय कर ले कि जिसने मुझ परमात्मामें अपना अन्तःकरण समर्पित कर दिया है वह मेरा भक्त कभी नष्ट नहीं होता? अर्थात् उसका कभी पतन नहीं होता।
।।9.29 -- 9.31।।सम इत्यादि प्रणश्यतीत्यन्तम्। प्रतिजाने इति। युक्तियुक्तोऽयमर्थो भगवत्प्रतिज्ञातत्वात् सुष्ठुतमां दृढो भवति।
।।9.31।। वह तत्काल (उसी क्षण) धर्मात्मा हो जाता है और निरन्तर रहनेवाली शान्तिको प्राप्त हो जाता है। हे कुन्तीनन्दन ! तुम प्रतिज्ञा करो कि मेरे भक्तका विनाश (पतन) नहीं होता।
।।9.31।। हे कौन्तेय, वह शीघ्र ही धर्मात्मा बन जाता है और शाश्वत शान्ति को प्राप्त होता है। तुम निश्चयपूर्वक सत्य जानो कि मेरा भक्त कभी नष्ट नहीं होता।।
।।9.31।। --,क्षिप्रं शीघ्रं भवति धर्मात्मा धर्मचित्तः एव। शश्वत् नित्यं शान्तिं च उपशमं निगच्छति प्राप्नोति। श्रृणु परमार्थम्? कौन्तेय प्रतिजानीहि निश्चितां प्रतिज्ञां कुरु? न मे मम भक्तः मयि समर्पितान्तरात्मा मद्भक्तः न प्रणश्यति इति।।किञ्च --,