क्लेशोऽधिकतरस्तेषामव्यक्तासक्तचेतसाम्।
अव्यक्ता हि गतिर्दुःखं देहवद्भिरवाप्यते।।12.5।।
श्रीमद् भगवद्गीता
।।12.5।। --,क्लेशः अधिकतरः? यद्यपि मत्कर्मादिपराणां क्लेशः अधिक एव क्लेशः अधिकतरस्तु अक्षरात्मनां परमात्मदर्शिनां देहाभिमानपरित्यागनिमित्तः। अव्यक्तासक्तचेतसाम् अव्यक्ते आसक्तं चेतः येषां ते अव्यक्तासक्तचेतसः तेषाम् अव्यक्तासक्तचेतसाम्। अव्यक्ता हि यस्मात् या गतिः अक्षरात्मिका दुःखं सा देहवद्भिः देहाभिमानवद्भिः अवाप्यते? अतः क्लेशः अधिकतरः।।अक्षरोपासकानां यत् वर्तनम्? तत् उपरिष्टाद्वक्ष्यामः --,
।।12.5।।किंतु --, ( उनको ) क्लेश अधिकतर होता है। यद्यपि मेरे ही लिये कर्मादि करनेमें लगे हुए साधकोंको भी बहुत क्लेश होता है? परंतु जिनका चित्त अव्यक्तमें आसक्त है? उन अक्षरचिन्तक परमार्थदर्शियोंको तो देहाभिमानका परित्याग करना पड़ता है? इसलिये उन्हें और भी अधिक क्लेश उठाना पड़ता है। क्योंकि जो अक्षरात्मिका अव्यक्तगति है वह देहाभिमानयुक्त पुरुषोंको बड़े कष्टसे प्राप्त होती है? अतः उनको अधिकतर क्लेश होता है। उन अक्षरोपासकोंका जैसा आचारविचारव्यवहार होता है वह आगे ( अद्वेष्टाइत्यादि श्लोकोंसे बतलायेंगे।