अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः।।8.14।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।8.14।।तथा --, अनन्यचित्तवाला अर्थात् जिसका चित्त अन्य किसी भी विषयका चिन्तन नहीं करता ऐसा जो योगी सर्वदा निरन्तर प्रतिदिन मुझ परमेश्वरका स्मरण किया करता है। यहाँ सततम् इस शब्दसे निरन्तरताका कथन है और नित्यशः इस शब्दसे दीर्घकालका कथन है अतः यह समझना चाहिये कि छः महीने या एक वर्ष ही नहीं किंतु जीवनपर्यन्त जो निरन्तर मेरा स्मरण करता है। हे पार्थ उस नित्यसमाधिस्थ योगीके लिये मैं सुलभ हूँ। अर्थात् उसको मैं अनायास प्राप्त हो जाता हूँ। जब कि यह बात है इसलिये ( मनुष्यको ) अनन्य चित्तवाला होकर सदा ही मुझमें समाहितचित्त रहना चाहिये।