सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदुः।
रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जनाः।।8.17।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।8.17।।ब्रह्मलोकसहित समस्त लोक पुनरावर्ती किस कारणसे हैं कालसे परिच्छिन्न हैं इसलिये कालसे परिच्छिन्न कैसे हैं --, ब्रह्मा -- प्रजापति अर्थात् विराट्के एक दिनको एक सहस्रयुगकी अवधिवाला अर्थात् जिसका एक सहस्रयुगमें अन्त हो ऐसा समझते हैं। तथा ब्रह्माकी रात्रिको भी सहस्रयुगकी अवधिवाली अर्थात् दिनके बराबर ही समझते हैं। ऐसा कौन समझते हैं सो कहते हैं -- वे दिन और रातके तत्त्वको जाननेवाले अर्थात् कालके परिमाणको जाननेवाले योगीजन ऐसा जानते हैं। इस प्रकार कालसे परिच्छिन्न होनेके कारण वे सभी लोक पुनरावृत्तिवाले हैं।