यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः।
विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः।।5.28।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।5.28।।जिसके इन्द्रिय मन और बुद्धि वशमें किये हुए हैं जो ईश्वरके स्वरूपका मनन करनेसे मुनि यानी संन्यासी है जो शरीरमें रहता हुआ भी मोक्षपरायण है अर्थात् जो मोक्षको ही परम आश्रय परम गति समझनेवाला मुनि है तथा जो इच्छा भय और क्रोधसे रहित हो चुका है जिसके इच्छा भय और क्रोध चले गये हैं जो इस प्रकार बर्तता है वह संन्यासी सदा मुक्त ही है उसे कोई दूसरी मुक्ति प्राप्त नहीं करनी है।