तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः।
उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये।।6.12।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।6.12।।( आसनको ) स्थिर स्थापन करके क्या करे ( सो कहते हैं ) उस आसनर बैठकर योगका साधन करे। कैसे करे मनको सब विषयोंसे हटाकर एकाग्र करके तथा यतचित्तेन्द्रियक्रिय यानी चित्त और इन्द्रियोंकी क्रियाओंको जीतनेवाला होकर योगका साधन करे। जिसने मन और इन्द्रियोंकी क्रियाओंका संयम कर लिया हो उसको यतचित्तेन्द्रियक्रिय कहते हैं। वह किसलिये योगका साधन करे सो कहते हैं आत्मशुद्धिके लिये अर्थात् अन्तःकरणकी शुद्धिके लिये करे।