प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः।
अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम्।।6.45।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।6.45।।योगित्व श्रेष्ठ किस कारणसे है जो प्रयत्नपूर्वक अधिक साधनमें लगा हुआ है वह विद्वान् योगी विशुद्धकिल्बिष अर्थात् अनेक जन्मोंमें थोड़ेथोड़े संस्कारोंको एकत्रितकर उन अनेक जन्मोंके सञ्चित संस्कारोंसे पापरहित होकर सिद्ध अवस्थाको प्राप्त हुआ सम्यक् ज्ञानको प्राप्त करके परमगति मोक्षको प्राप्त होता है।