सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत।
श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्धः स एव सः।।17.3।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।17.3।।वह श्रद्धा इस तरह तीन प्रकारकी होती है --, हे भारत सभी प्राणियोंकी श्रद्धा ( उनके ) भिन्नभिन्न संस्कारोंसे युक्त अन्तःकरणके अनुरूप होती है। यदि ऐसा है तो उससे क्या होगा इसपर कहते हैं -- यह पुरुष अर्थात् संसारी जीव श्रद्धामय है क्योंकि जो जिस श्रद्धावाला है अर्थात् जिस जीवकी जैसी श्रद्धा है? वह स्वयं भी वही है? अर्थात् उस श्रद्धाके अनुरूप ही है।