अर्जुन उवाच
संन्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्।
त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन।।18.1।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।18.1।।इस अध्यायमें पहलेके सभी अध्यायोंमें कहा हुआ अभिप्राय मिलता है। तथापि अर्जुन केवल संन्यास और त्याग -- इन दो शब्दोंके अर्थोंका भेद जाननेकी इच्छासे ही प्रश्न करता है --,अर्जुन बोला -- हे महाबाहो हे हृषीकेश हे केशिनिषूदन मैं संन्यासका अर्थात् संन्यासशब्दके अर्थका और त्यागका अर्थात् त्यागशब्दके अर्थका तत्त्व -- यथार्थ स्वरूप अलगअलग विभागपूर्वक जानना चाहता हूँ। भगवान् वासुदेवने छलसे घोड़ेका रूप धारण करनेवाले केशि नामक असुरको मारा था? इसलिये वे उस,( केशिनिषूदन ) नामसे अर्जुनद्वारा सम्बोधित किये गये हैं।
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