श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला।
समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि।।2.53।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।2.53।।यदि तू पूछे कि मोहरूप मलिनतासे पार होकर आत्मविवेकजन्य बुद्धिको प्राप्त हुआ मैं कर्मयोगके फलरूप परमार्थयोगको ( ज्ञानको ) कब पाऊँगा तो सुन
अनेक साध्य साधन और उनका सम्बन्ध बतलानेवाली श्रुतियोंसे विप्रतिपन्न अर्थात् नाना भावोंको प्राप्त हुई विक्षिप्त हुई तेरी बुद्धि जब समाधिमें यानी जिसमें चित्तका समाधान किया जाय वह समाधि है इस व्युत्पत्तिसे आत्माका नाम समाधि है उसमें अचल और दृढ़ स्थिर हो जायगी यानी विक्षेपरूप चलनसे और विकल्पसे रहित होकर स्थिर हो जायगी।
तब तू योगको प्राप्त होगा अर्थात् विवेकजनित बुद्धिरूप समाधिनिष्ठाको पावेगा।