तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।2.68।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।2.68।।यततो ह्यपि इस श्लोकसे प्रतिपादित अर्थकी अनेक प्रकारसे उपपत्ति बतलाकर उस अभिप्रायको सिद्ध करके अब उसका उपसंहार करते हैं
क्योंकि इन्द्रियोंकी प्रवृत्तिमें दोष सिद्ध किया जा चुका है इसलिये हे महाबाहो जिस साधककी इन्द्रियाँ अपनेअपने शब्दादि विषयोंसे सब प्रकारसे अर्थात् मानसिक आदि भेदोंसे निगृहीत की जा चुकी हैं ( वशमें की हुई हैं ) उसकी बुद्धि प्रतिष्ठित है।