श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

श्री भगवानुवाच

इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।

विवस्वान् मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्।।4.1।।

 

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।4.1।। श्रीभगवान् ने कहा ---  मैंने इस अविनाशी योग को विवस्वान् (सूर्य देवता) से कहा (सिखाया);  विवस्वान् ने मनु से कहा;  मनु ने इक्ष्वाकु से कहा।।
 

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।4.1।। इमम् अध्यायद्वयेनोक्तं योगं विवस्वते आदित्याय सर्गादौ प्रोक्तवान् अहं जगत्परिपालयितृ़णां क्षत्रियाणां बलाधानाय तेन योगबलेन युक्ताः समर्था भवन्ति ब्रह्म परिरक्षितुम्। ब्रह्मक्षत्रे परिपालिते जगत् परिपालयितुमलम्। अव्ययम् अव्ययफलत्वात्। न ह्यस्य योगस्य सम्यग्दर्शननिष्ठालक्षणस्य मोक्षाख्यं फलं व्येति। स च विवस्वान् मनवे प्राह। मनुः इक्ष्वाकवे स्वपुत्राय आदिराजाय अब्रवीत्।।

Hindi Commentary By Swami Chinmayananda

।।4.1।। जैसा कि इस अध्याय की प्रस्तावना में कहा गया है भगवान् यहाँ स्पष्ट करते हैं कि अब तक उनके द्वारा दिया गया उपदेश नवीन न होकर सनातन वेदों में प्रतिपादित ज्ञान की ही पुर्नव्याख्या है। स्वस्वरूप की स्मृति से स्फूर्त होकर भगवान् घोषणा करते हैं कि उन्होंने ही सृष्टि के प्रारम्भ में इस ज्ञान का उपदेश सूर्य देवता (विवस्वान्) को दिया था। विवस्वान् ने अपने पुत्र मनु जो भारत के प्राचीन स्मृतिकार हुए को यह ज्ञान सिखाया। मनु ने इसका उपदेश राजा इक्ष्वाकु को दिया जो सूर्यवंश के पूर्वज थे। इस वंश के राजाओं ने दीर्घकाल तक अयोध्या पर शासन किया।वेद शब्द संस्कृत के विद् धातु से बना है जिसका अर्थ है जानना। अत वेद का अर्थ है ज्ञान अथवा ज्ञान का साधन (प्रमाण)। वेदों का प्रतिपाद्य विषय है जीव के शुद्ध ज्ञान स्वरूप तथा उसकी अभिव्यक्ति के साधनों का बोध।जैसे हम विद्युत् को नित्य कह सकते हैं क्योंकि उसके प्रथम बार आविष्कृत होने के पूर्व भी वह थी और यदि हमें उसका विस्मरण भी हो जाता है तब भी विद्युत् शक्ति का अस्तित्व बना रहेगा इसी प्रकार हमारे नहीं जानने से दिव्य चैतन्य स्वरूप आत्मा का नाश नहीं होता। इस अविनाशी आत्मा का ज्ञान वास्तव में अव्यय है।आधुनिक विज्ञान भी यह स्वीकार करता है कि विश्व का निर्माण सूर्य के साथ प्रारम्भ होना चाहिये। शक्ति के स्रोत के रूप में सर्वप्रथम सूर्य की उत्पत्ति हुई और उसकी उत्पत्ति के साथ ही यह महान् आत्मज्ञान विश्व को दिया गया।वेदों का विषय आत्मानुभूति होने के कारण वाणी उसका वर्णन करने में सर्वथा असमर्थ है। कोई भी गम्भीर अनुभव शब्दों के द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता। अत स्वयं की बुद्धि से ही शास्त्रों का अध्ययन करने से उनका सम्यक् ज्ञान तो दूर रहा विपरीत ज्ञान होने की ही सम्भावना अधिक रहती है। इसलिये भारत में यह प्राचीन परम्परा रही है कि अध्यात्म ज्ञान के उपदेश को आत्मानुभव में स्थित गुरु के मुख से ही श्रवण किया जाता है। गुरुशिष्य परम्परा से यह ज्ञान दिया जाता रहा है। यहाँ इस ब्रह्मविद्या के पूर्वकाल के विद्यार्थियों का परिचय कराया गया है।

Sanskrit Commentary By Sri Abhinavgupta



।।4.1 4.3।।एवमित्यादि उत्तमम् इत्यन्तम्। एतच्च गुरुपरम्पराप्राप्तमपि (S परम्परायातमपि K परम्परया प्राप्तमपि) अद्यत्वे नष्टमित्यनेन (S N अद्यत्वे तन्नष्ट) भगवान् अस्य ज्ञानस्य दुर्लभतां गौरवं च प्रदर्शयति। भक्तोऽसि मे सखा चेति। त्वं भक्तः मत्परमः सखा च। चशब्देन अन्वाचय उच्यते। तेन यथा भिक्षाटने भिक्षायां प्राधान्यं गवानयने त्वप्राधान्यम् एवं भक्तिरत्र गुरुं प्रति प्रधानं न सखित्वमपीति तात्पर्यार्थं।

English Translation of Abhinavgupta's Sanskrit Commentary By Dr. S. Sankaranarayan

4.1 See Comment under 4.3

English Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

4.1 In the beginning of creation, with a veiw to infusing vigour into the Ksatriyas who are the protectors of the world, aham, I; proktavan, imparted; imam, this; avyayam, imperishable; yogam, Yoga, presented in the (preceding) two chapters; vivasvate, to Vivasvan, the Sun. Being endowed with this power of Yoga, they would be able to protect the Brahmana caste. The protection of the world becomes ensured when the Brahmanas and the Ksatriyas are protected. It (this Yoga) is avyayam, imperishable, because its result is undecaying. For, the result-called Liberation-of this (Yoga), which is characterized by steadfastness in perfect Illumination, does not decay. And he, Vivasvan, praha, taught (this); manave, to Manu. Manu abravit, transmitted (this); iksvakave, to Iksvaku, his own son who was the first king. [First king of the Iksvaku dynasty, otherwise known as the Solar dynasty.]

English Translation By Swami Gambirananda

4.1 The Blessed Lord said I imparted this imperishable Yoga to Vivasvan, Vivasvan taught this to Manu, and Manu transmitted this to Iksavaku.