श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

राजन्संस्मृत्य संस्मृत्य संवादमिममद्भुतम्।

केशवार्जुनयोः पुण्यं हृष्यामि च मुहुर्मुहुः।।18.76।।

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।18.76।।हे राजन् ! भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुनके इस पवित्र और अद्भुत संवादको याद कर-करके मैं बार-बार हर्षित हो रहा हूँ।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।18.76।। हे राजन् ! भगवान् केशव और अर्जुन के इस अद्भुत और पुण्य (पवित्र) संवाद को स्मरण करके मैं बारम्बार हर्षित होता हूँ।।
 

Sanskrit Commentary By Sri Madhusudan Saraswati

।।18.76।।राजन्निति। पुण्यं श्रवणेनापि सर्वपापहरं केशवार्जुनयोरिमं संवादमद्भुतं न केवलं श्रुतवानस्मि किंतु संस्मृत्य संस्मृत्य। संभ्रमे द्विरुक्तिः। मुहुर्मुहुर्वारंवारं हृष्यामि च हर्षं प्राप्नोमि च। प्रतिक्षणं रोमाञ्चितो भवामीति वा।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।18.76।। --,हे राजन् धृतराष्ट्र? संस्मृत्य संस्मृत्य प्रतिक्षणं संवादम् इमम् अद्भुतं केशवार्जुनयोः पुण्यम् इमं श्रवणेनापि पापहरं श्रुत्वा हृष्यामि च मुहुर्मुहुः प्रतिक्षणम्।।

Hindi Commentary By Swami Chinmayananda

।।18.76।। ईश्वरीय काव्य गीता को श्रवण करके संजय इस श्लोक में अपनी स्पष्ट प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहता है कि भगवान् केशव और मानव अर्जुन सम्पूर्ण एवं अपूर्ण? उच्च एवं निम्न के मध्य यह संवाद अद्भुत और पुण्यपवित्र है।संजय द्वारा श्रवण किया गया गीता का ज्ञान इतना गम्भीर और आकर्षक रूप से बोधगम्य था कि वह उसे पुन पुन स्मरण करके अपने हृदय में बारम्बार हर्षित हो रहा था।गीता जीवन जीने की कला को बताने वाली सूचनाओं की निर्देशिका है अत? यहाँ भी महर्षि व्यास जी अप्रत्यक्ष रूप से हमें साधनमार्ग का संकेत करते हैं। संस्मृत्य (स्मरण करके) शब्द के द्वारा वे यह दर्शाते हैं कि साधक को श्रवण करने के पश्चात्? बारम्बार मनन? अर्थात् प्राप्त ज्ञान पर चिन्तन करना चाहिए। सम्यक् ज्ञान का फल हर्ष होगा।गर्भ से शवागर्त तक की निरर्थक जीवन यात्रा में? जब मनुष्य कोई निश्चित दिव्य लक्ष्य देख लेता है? तब वह प्रसन्न हो जाता है। गीता का अध्ययन न केवल हमारे दैनिक जीवन को ही अर्थवन्त बना देता है? वरन् सम्पूर्ण जगत् को एक सुनिश्चित आशा और आनन्द का सन्देश भी देता है। गीता हमें जीवन की अन्धेरी गलियों से उठाकर? अपने आन्तरिक साम्राज्य के राजसिंहासन पर प्रतिष्ठित कर देती है। वह मनुष्य को अपनी आन्तरिक परिस्थितियों का सम्राट बना देती है। अज्ञान की दशा में मनुष्य के जीवन का अर्थ केवल वस्तुओं और प्राणियों के आविर्भाव और तिरोभाव रूपी मृत्यु का विक्षिप्त नृत्य ही होता है परन्तु गीताज्ञान से शिक्षित पुरुष उसी दिन प्रतिदिन के सामान्य जीवन में एक लय को पहचानता है? सुन्दरता का अवलोकन करता है और मधुर संगीत का श्रवण करता है।विश्वरूप दर्शन का स्मरण करते हुए संजय कहता है

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।18.76।।हे राजन् धृतराष्ट्र केशव और अर्जुनके इस ( परम ) पवित्र -- सुननेमात्रसे पापोंका नाश करनेवाले? अद्भुत संवादको सुनकर और बारम्बार स्मरण करके? मैं प्रतिक्षण बारम्बार हर्षित हो रहा हूँ।

Sanskrit Commentary By Sri Madhavacharya

।।18.76।।Sri Madhvacharya did not comment on this sloka.,

Sanskrit Commentary By Sri Ramanuja

।।18.76।।केशवार्जुनयोः इमं पुण्यम् अद्भुतं संवादं साक्षाच्छ्रुतं स्मृत्वा मुहुः मुहुः हृष्यामि।

English Translation of Abhinavgupta's Sanskrit Commentary By Dr. S. Sankaranarayan

18.76 See Comment under 18.78

English Translation by Shri Purohit Swami

18.76 O King! The more I think of that marvellous and holy discourse, the more I lose myself in joy.

English Translation By Swami Sivananda

18.76 O King, remembering this wonderful and holy dialogue between Krishna and Arjuna, I rejoice again and again.