श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः।

जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम्।।2.51।।

 

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।2.51।। समतायुक्त मनीषी साधक कर्मजन्य फलका त्याग करके जन्मरूप बन्धनसे मुक्त होकर निर्विकार पदको प्राप्त हो जाते हैं।
 

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।2.51।। बुद्धियोग युक्त मनीषी लोग कर्मजन्य फलों को त्यागकर जन्मरूप बन्धन से मुक्त हुये अनामय अर्थात् निर्दोष पद को प्राप्त होते हैं।।

Sanskrit Commentary By Sri Madhusudan Saraswati

।।2.51।।ननु दुष्कृतहानमपेक्षितं नतु सुकृतहानं पुरुषार्थभ्रंशापत्तेरित्याशङ्क्य तुच्छफलत्यागेन परमपुरुषार्थप्राप्तिं फलमाह समत्वबुद्धियुक्ता हि यस्मात्कर्मजं फलं त्यक्त्वा केवलमीश्वराराधनार्थं कर्माणि कुर्वाणाः सत्त्वशुद्धिद्वारेण

मनीषिणस्तत्त्वमस्यादिवाक्यजन्यात्ममनीषावन्तो भवन्ति तादृशाश्च सन्तो जन्मात्मकेन बन्धेन विनिर्मुक्ताः

विशेषेणात्यन्तिकत्वलक्षणेन निरवशेषं मुक्ताः पदं पदनीयमात्मतत्त्वमानन्दरूपं ब्रह्म अनामयमविद्यातत्कार्यात्मकरोगरहितमभयं मोक्षाख्यं पुरुषार्थं गच्छन्ति। अभेदेन प्राप्नुवन्तीत्यर्थः। यस्मादेवं फलकामनां त्यक्त्वा समत्वबुद्ध्या कर्माण्यनुतिष्ठन्तस्तैः

कृतान्तःकरणशुद्धयस्तत्त्वमस्यादिप्रमाणोत्पन्नात्मतत्त्वज्ञानविनष्टाज्ञानतत्कार्याः सन्तः सकलानर्थनिवृत्तिपरमानन्दप्राप्तिरूपं मोक्षाख्यं विष्णोः परमं पदं गच्छन्ति तस्मात्त्वमपियच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे इत्युक्तेः श्रेयोजिज्ञासुरेवंविधं

कर्मयोगमनुतिष्ठेति भगवतोऽभिप्रायः।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।2.51।।
 कर्मजं  फलं त्यक्त्वा इति व्यवहितेन संबन्धः। इष्टानिष्टदेहप्राप्तिः कर्मजं फलं कर्मभ्यो जातं  बुद्धियुक्ताः  समत्वबुद्धियुक्ताः सन्तः  हि  यस्मात्  फलं त्यक्त्वा  परित्यज्य  मनीषिणः  ज्ञानिनो भूत्वा  जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः  जन्मैव बन्धः जन्मबन्धः तेन विनिर्मुक्ताः जीवन्त एव जन्मबन्धात् विनिर्मुक्ताः सन्तः  पदं  परमं विष्णोः मोक्षाख्यं  गच्छन्ति   अनामयं  सर्वोपद्रवरहितमित्यर्थः। अथवा बुद्धियोगाद्धनञ्जय इत्यारभ्य परमार्थदर्शनलक्षणैव

सर्वतःसंप्लुतोदकस्थानीया कर्मयोगजसत्त्वशुद्धिजनिता बुद्धिर्दर्शिता साक्षात्सुकृतदुष्कृतप्रहाणादिहेतुत्वश्रवणात्।।
योगानुष्ठानजनितसत्त्वशुद्धजा बुद्धिः कदा प्राप्स्यते इत्युच्यते

Hindi Commentary By Swami Chinmayananda

।।2.51।। योगयुक्त बनने के उपदेश को सुनकर अर्जुन के मन में प्रश्न उठा कि आखिर समभाव से उसको कर्म क्यों करने चाहिये। भगवान् इस प्रश्न का कुछ पूर्वानुमान कर इस श्लोक में उसका उत्तर देते हैं। बुद्धियुक्त मनीषी का अर्थ है वह पुरुष जो जीने की कला को जानता हुआ फल की चिन्ताओं से मुक्त होकर मन के पूर्ण सन्तुलन को बनाये हुये सभी कर्म करता है। दूसरे शब्दों में अहंकार और स्वार्थ से रहित व्यक्ति ही मनीषी कहलाता है।
मन के साथ तादात्म्य से अहंकार उत्पन्न होता है और वह फलासक्ति के कारण बन्धनों में फँस जाता है। जीवन में उच्च लक्ष्य को रखने पर ही अहंकार और स्वार्थ का त्याग संभव है।

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।2.51।।क्योंकि

कर्मजम् इस पदका फलं त्यक्त्वा इस अगले पदसे सम्बन्ध है।
कर्मोंसे उत्पन्न होनेवाली जो इष्टानिष्टदेहप्राप्ति है वही कर्मज फल कहलाता है समत्वबुद्धियुक्त पुरुष उस कर्मफलको छोड़कर मनीषी अर्थात् ज्ञानी होकर जीवित अवस्थामें ही जन्मबन्धनसे निर्मुक्त होकर अर्थात् जन्म नामके बन्धनसे छूटकर विष्णुके मोक्ष नामक अनामय सर्वोपद्रवरहित परमपदको पा लेते हैं।
अथवा ( यों समझो कि ) बुद्धियोगाद्धनंजय इस श्लोकसे लेकर ( यहाँतक बुद्धि शब्दसे ) कर्मयोगजनित सत्त्वशुद्धिसे उत्पन्न हुई जो सर्वतःसंप्लुतोदकस्थानीय परमार्थज्ञानरूपा बुद्धि है वही दिखलायी गयी है क्योंकि ( यहाँ ) यह बुद्धि पुण्यपापके नाशमें साक्षात् हेतुरूपसे वर्णित है।

Sanskrit Commentary By Sri Madhavacharya

।।2.51।।   तदुपायमाह कर्मजमिति। कर्मजं फलं त्यक्त्वाऽकामनयेश्वराय समर्प्य बुद्धियुक्ताः। सम्यग्ज्ञानिनो भूत्वा पदं गच्छन्ति। स योगः कर्म ज्ञानसाधनम्। तन्मोक्षसाधनमिति भावः।

Sanskrit Commentary By Sri Ramanuja

।।2.51।।बुद्धियोगयुक्ताः  कर्मजं फलं त्यक्त्वा  कर्म कुर्वन्तः तस्माद्  जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः अनामयं पदं गच्छन्ति।  हि प्रसिद्धम् एतत् सर्वासु उपनिषत्सु इत्यर्थः।

English Translation of Abhinavgupta's Sanskrit Commentary By Dr. S. Sankaranarayan

2.51 Karmajam etc. The persons who are endowed with the determining faculty with regard to the Yoga, renounce the birth-bondage, by renouncing the fruit of actions; and they attain the Brahman-existence.

English Translation by Shri Purohit Swami

2.51 The sages guided by Pure Intellect renounce the fruit of action; and, freed from the chains of rebirth, they reach the highest bliss.

English Translation By Swami Sivananda

2.51 The wise, possessed of knowledge, having abandoned the fruits of their actions, and being freed from the fetters of birth, go to the place which is beyond all evil.