श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः।

स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप।।4.2।।

 

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।4.2।। हे परंतप ! इस तरह परम्परासे प्राप्त इस कर्मयोग को राजर्षियोंने जाना। परन्तु बहुत समय बीत जानेके कारण वह योग इस मनुष्यलोकमें लुप्तप्राय हो गया।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।4.2।। इस प्रकार परम्परा से प्राप्त हुये इस योग को राजर्षियों ने जाना, (परन्तु) हे परन्तप ! वह योग बहुत काल (के अन्तराल) से यहाँ (इस लोक में) नष्टप्राय हो गया।।
 

Sanskrit Commentary By Sri Madhusudan Saraswati

।।4.2।।एवमादित्यमारभ्य गुरुशिष्यपरम्परया प्राप्तमिमं योगं। राजानश्च ते ऋषयश्चेति राजर्षयः प्रभुत्वे सति सूक्ष्मार्थनिरीक्षणक्षमा निमिप्रमुखाः स्वपित्रादिप्रोक्तं विदुः। तस्मादनादिवेदमूलत्वेनानन्तफलत्वेनानादिगुरुशिष्यपरंपराप्राप्तत्वेन च कृत्रिमत्वशङ्कानास्पदत्वान्महाप्रभावोऽयं योग इति श्रद्धातिशयाय स्तूयते स एवं महाप्रयोजनोऽपि योगः कालेन महता दीर्घेण धर्मह्रासकरेण इह इदानीमावयोर्व्यवहारकाले द्वापरान्ते दुर्बलानजितेन्द्रियाननधिकारिणः प्राप्य कामक्रोधादिभिरभिभूयमानो नष्टः विच्छिन्नसंप्रदायो जातः। तं विना पुरुषार्थाप्राप्तेः। अहो दौर्भाग्यं लोकस्येति शोचति भगवान्। हे परंतप परं कामक्रोधादिरूपं शत्रुगणं शौर्येण बलवता विवेकेन तपसा च भानुरिव तापयतीति परंतपः शत्रुतापनः। जितेन्द्रिय इत्यर्थः। उर्वश्युपेक्षणाद्यद्भुतकर्मदर्शनात्। तस्मात्त्वं जितेन्द्रियत्वादत्राधिकारिति सूचयति।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।4.2।। एवं क्षत्रियपरम्पराप्राप्तम् इमं राजर्षयः राजानश्च ते ऋषयश्च राजर्षयः विदुः इमं योगम्। स योगः कालेन इह महता दीर्घेण नष्टः विच्छिन्नसंप्रदायः संवृत्तः। हे परंतप आत्मनः विपक्षभूताः परा इति उच्यन्ते तान् शौर्यतेजोगभस्तिभिः भानुरिव तापयतीति परंतपः शत्रुतापन इत्यर्थः।।दुर्बलानजितेन्द्रियान् प्राप्य नष्टं योगमिममुपलभ्य लोकं च अपुरुषार्थसंबन्धिनम्

Hindi Commentary By Swami Chinmayananda

।।4.2।। वेदों में प्रवृत्ति और निवृत्ति मार्गों का उपदेश है। इस योग का परम्परागत रूप से राजर्षियों को ज्ञान था परन्तु लगता है इस योग का भी अपना दुर्भाग्य और सौभाग्य है इतिहास के किसी काल में मानव मात्र की सेवा के लिये यह ज्ञान उपलब्ध होता है और किसी अन्य समय अनुपयोगी सा बनकर निरर्थक हो जाता है तब अध्यात्म का स्वर्ण युग समाप्त होकर भोगप्रधान आसुरी जीवन का अन्धा युग प्रारम्भ होता है किन्तु आसुरी भौतिकवाद से ग्रस्त काल में भी वह पीढ़ी अपने ही अवगुणों से पीड़ित होने के लिये उपेक्षित नहीं रखी जाती। क्योंकि उस समय कोई महान् गुरु अध्यात्म क्षितिज पर अवतीर्ण होकर तत्कालीन पीढ़ी को प्रेरणा साहस उत्स्ााह और आवश्यक नेतृत्व प्रदान करके दुख पूर्ण पगडंडी से बाहर सांस्कृतिक पुनरुत्थान के राजमार्ग पर ले आता है।महाभारत काल का उचित मूल्यांकन करते हुए श्रीकृष्ण भगवान् ठीक ही कहते हैं कि दीर्घकाल के अन्तराल से वह योग यहाँ नष्ट हो गया है।यह देखकर कि इन्द्रिय संयम से रहित दुर्बल व्यक्तियों के हाथों में जाकर यह योग नष्टप्राय हो गया जिसके बिना जीवन का परम् पुरुषार्थ प्राप्त नहीं किया जा सकता। भगवान् आगे कहते हैं

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।4.2।।इस प्रकार क्षत्रियोंकी परम्परासे प्राप्त हुए इस योगको राजर्षियोंने जो कि राजा और ऋषि दोनों थे जाना। हे परंतप ( अब ) वह योग इस मनुष्यलोकमें बहुत कालसे नष्ट हो गया है। अर्थात् उसकी सम्प्रदायपरम्परा टूट गयी है। अपने विपक्षियोंको पर कहते हैं उन्हें जो शौर्यरूप तेजकी किरणोंके द्वारा सूर्यके समान तपता है वह पपातप यानी शत्रुओंको तपानेवाला कहा जाता है।

Sanskrit Commentary By Sri Madhavacharya

।।4.1 4.3।।श्रीमदमलबोधाय नमः। हरिः ँ़। बुद्धेः परस्य माहात्म्यं कर्मभेदो ज्ञानमाहात्म्यं चोच्यतेऽस्मिन्नध्याये। पूर्वानुष्ठितश्चायं धर्म इत्याह इममिति।

Sanskrit Commentary By Sri Ramanuja

।।4.2।।श्री भगवानुवाच यः अयं तव उदितो योगः स केवलं युद्धप्रोत्साहनाय इदानीम् उदित इति न मन्तव्यम्। मन्वन्तरादौ एव निखिलजगदुद्धरणाय परमपुरुषार्थलक्षणमोक्षसाधनतया इमं योगम् अहम् एव विवस्वते प्रोक्तवान्। विवस्वान् च मनवे मनुः इक्ष्वाकवे इति एवं सम्प्रदायपरम्परया प्राप्तम् इमं योगं पूर्वे राजर्षयो विदुः। स महता कालेन तत्तच्छ्रोतृबुद्धिमान्द्याद् विनष्टप्रायः अभूत्।

English Translation of Abhinavgupta's Sanskrit Commentary By Dr. S. Sankaranarayan

4.2 See Comment under 4.3

English Translation by Shri Purohit Swami

4.2 The Divine Kings knew it, for it was their tradition. Then, after a long time, at last it was forgotten.

English Translation By Swami Sivananda

4.2 This, handed down thus in regular succession, the royal sages knew. This Yoga, by long lapse of time, has been lost here, O Parantapa (burner of the foes).