श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया।

त्वत्तः कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम्।।11.2।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।11.2।।तथा --, मैंने आपसे प्राणियोंके भव -- उत्पत्ति और अप्यय -- प्रलय? ये दोनों संक्षेपसे नहीं? विस्तारपूर्वक सुने हैं और हे कमलपत्राक्ष अर्थात् कमलपत्रके सदृश नेत्रोंवाले कृष्ण आपका अविनाशी -- अक्षय माहात्म्य भी मैं सुन चुका हूँ। श्रुतम् यह क्रियापद पूर्ववाक्यसे लिया गया है।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।11.2।। --,भवः उत्पत्तिः अप्ययः प्रलयः तौ भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशः मया? न संक्षेपतः? त्वत्तः त्वत्सकाशात्? कमलपत्राक्ष कमलस्य पत्रं कमलपत्रं तद्वत् अक्षिणी यस्य तव स त्वं कमलपत्राक्षः हे कमलपत्राक्ष? महात्मनः भावः माहात्म्यमपि च अव्ययम् अक्षयम् श्रुतम् इति अनुवर्तते।।

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।11.2।।  हे कमलनयन ! सम्पूर्ण प्राणियोंकी उत्पत्ति और प्रलय मैंने विस्तारपूर्वक आपसे ही सुना है और आपका अविनाशी माहात्म्य भी सुना है।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।11.2।। हे कमलनयन ! मैंने भूतों की उत्पत्ति और प्रलय आपसे विस्तारपूर्वक सुने हैं तथा आपका अव्यय माहात्म्य (प्रभाव) भी सुना है।।