श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो।

योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयाऽत्मानमव्ययम्।।11.4।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।11.4।।हे स्वामिन् यदि मुझ अर्जुनद्वारा आप अपना वह रूप देखा जाना सम्भव समझते हैं? तो हे योगेश्वर अर्थात् योगियोंके ईश्वर मैं आपके उस रूपका दर्शन करनेकी उत्कट इच्छा करता हूँ? इसलिये आप मुझे अपना वह अविनाशी स्वरूप दिखलाइये।

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Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।11.4।। --,मन्यसे चिन्तयसि यदि मया अर्जुनेन तत् शक्यं द्रष्टुम् इति प्रभो? स्वामिन्? योगेश्वर योगिनो योगाः? तेषां ईश्वरः योगेश्वरः? हे योगेश्वर। यस्मात् अहम् अतीव अर्थी द्रष्टुम्? ततः तस्मात् मे मदर्थं दर्शय त्वम् आत्मानम् अव्ययम्।।एवं चोदितः अर्जुनेन श्री भगवान् उवाच --,

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।11.4।। हे प्रभो ! मेरे द्वारा आपका वह परम ऐश्वर रूप देखा जा सकता है -- ऐसा अगर आप मानते हैं, तो हे योगेश्वर ! आप अपने उस अविनाशी स्वरूपको मुझे दिखा दीजिये।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।11.4।। हे प्रभो ! यदि आप मानते हैं कि मेरे द्वारा वह आपका रूप देखा जाना संभव है, तो हे योगेश्वर ! आप अपने अव्यय रूप का दर्शन कराइये।।