श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

श्री भगवानुवाच

बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।

तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप।।4.5।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।4.5।।भगवान् श्रीवासुदेवके विषयमें मूर्खोंकी जो ऐसी शङ्का है कि ये ईश्वर नहीं हैं सर्वज्ञ नहीं हैं तथा जिस शङ्काको दूर करनेके लिये ही अर्जुनका यह प्रश्न है उसका निवारण करते हुए श्रीभगवान् बोले हे अर्जुन मेरे और तेरे पहले बहुत जन्म हो चुके हैं। उन सबको मैं जानता हूँ तू नहीं जानता क्योंकि पुण्यपाप आदिके संस्कारोंसे तेरी ज्ञानशक्ति आच्छादित हो रही है। परंतु मैं तो नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभाववाला हूँ इस कारण मेरी ज्ञानशक्ति आवरणरहित है इसलिये हे परन्तप मैं ( सब कुछ ) जानता हूँ।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।4.5।। बहूनि मे मम व्यतीतानि अतिक्रान्तानि जन्मानि तव च हे अर्जुन। तानि अहं वेद जाने सर्वाणि न त्वं वेत्थ न जानीषे धर्माधर्मादिप्रतिबद्धज्ञानशक्तित्वात्। अहं पुनः नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभावत्वात् अनावरणज्ञानशक्तिरिति वेद अहं हे परंतप।।कथं तर्हि तव नित्येश्वरस्य धर्माधर्माभावेऽपि जन्म इति उच्यते

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।4.5।। श्रीभगवान् बोले -- हे परन्तप अर्जुन ! मेरे और तेरे बहुत-से जन्म हो चुके हैं। उन सबको मैं जानता हूँ, पर तू नहीं जानता।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।4.5।। श्रीभगवान् ने कहा -- हे अर्जुन ! मेरे और तुम्हारे बहुत से जन्म हो चुके हैं, (परन्तु) हे परन्तप ! उन सबको मैं जानता हूँ और तुम नहीं जानते।।