श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्।

प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया।।4.6।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।4.6।।तो फिर आप नित्य ईश्वरका पुण्यपापसे सम्बन्ध न होनेपर भी जन्म कैसे होता है इसपर कहा जाता है यद्यपि मैं अजन्मा जन्मरहित अव्ययात्मा अक्षीण ज्ञानशक्तिस्वभाववाला और ब्रह्मासे लेकर स्तम्बपर्यन्त सम्पूर्ण भूतोंका नियमन करनेवाला ईश्वर भी हूँ तो भी अपनी त्रिगुणात्मिका वैष्णवी मायाको जिसके वशमें सब जगत् बर्तता है और जिससे मोहित हुआ मनुष्य वासुदेवरूप अपनेआपको नहीं जानता उस अपनी प्रकृतिको अपने वशमें रखकर केवल अपनी लीलासे ही शरीरवालासा जन्म लिया हुआसा हो जाता हूँ अन्य लोगोंकी भाँति वास्तवमें जन्म नहीं लेता।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।4.6।। अजोऽपि जन्मरहितोऽपि सन् तथा अव्ययात्मा अक्षीणज्ञानशक्तिस्वभावोऽपि सन् तथा भूतानां ब्रह्मादिस्तम्बपर्यन्तानाम् ईश्वरः ईशनशीलोऽपि सन् प्रकृतिं स्वां मम वैष्णवीं मायां त्रिगुणात्मिकाम् यस्या वशे सर्वं जगत् वर्तते यया मोहितं सत् स्वमात्मानं वासुदेवं न जानाति तां प्रकृतिं स्वाम् अधिष्ठाय वशीकृत्य संभवामि देहवानिव भवामि जात इव आत्ममायया आत्मनः मायया न परमार्थतो लोकवत्।।तच्च जन्म कदा किमर्थं च इत्युच्यते

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।4.6।। मैं अजन्मा और अविनाशी-स्वरूप होते हुए भी तथा सम्पूर्ण प्राणियोंका ईश्वर होते हुए भी अपनी प्रकृतिको अधीन करके अपनी योगमायासे प्रकट होता हूँ।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।4.6।। यद्यपि मैं अजन्मा और अविनाशी स्वरूप हूँ और भूतमात्र का ईश्वर हूँ (तथापि) अपनी प्रकृति को अपने अधीन रखकर (अधिष्ठाय) मैं अपनी माया से जन्म लेता हूँ।।